समीचीन - धर्मशास्त्र | Sami Chin Dharmashastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म्न राक कय षष्
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प्रकाशनका काम फिर कुछ परिस्थितियोंके वश--खासकर पुरातन
जैनवाक्यसची तथा स्वयम्भूस्तोत्रादिकी भारी विस्तृत प्रस्तावनाश्रों
श्नौर दूसरे महत्वके खोजपूर्ण ज़रूरी लेखोंके लिखने एवं अन्थोंकि
प्रकाशने प्रबूत्त होनेके कारण--रुक गया । सन् १६४२ के माचे
मासमें निमोनियाकी बीमारीसे उठकर उस कामकों फिरसे हाथमें
लिया गया श्रौर अनेकान्तमें 'समन्तभद्र-वचनासत” रूपसे उसके
दूसरे श्रंशोंको देना भी प्रारम्भ किया गया । इतनेमें ही १३ अप्रेल
को वह प्रसिद्ध तांगा-दुर्घटना घटी जिसने प्राणोंको ही संकटमें
डाल दिया था । इस दुर्घटनासे कान ओर भी खड़े होगये और
इसलिये अस्वस्थ दशामें भी भाष्यके तय्यार अंशोको प्रकाशमें
लाने आदिका काय यथाशक्य जारी रक्खा गया शरोर जिन
कारिकाओंकी व्याख्या नहीं लिखी जा सकी थी उनमेंसे अनेक
को मात्र अनुवादके साथ ही प्रकाशित कर दिया गया--बादकों
यथासमय तत्सम्बन्घी व्याख्या की पूर्ति होती रही । इस तरह
ब्नेक विष्न-बाघाओोंको पार कर यह भाष्य सन् १६५३ के
उत्तराद्धमें बनकर समाप्त हुआ हैं । और यों इसके निर्माणमें १२
वपं लग गये-संकल्पके पूरा होनेमें तो २० वपंसे मौ ऊपरका
समय सममिये । यै नो इस स्वामी समन्तमद्रके श्दोमें ‹अलंघ्य
शक्ति मवितव्यता'का णक चिघान ही समभता हूँ और साथ ही
यदह भी समभतता हूँ कि पिछली भीषण ताँगा-दुर्घटनासे जो मेरा
संत्राण हुआ है वह ऐसे सत्संकल्पोंको पूरा करनके लिये ही हुश्रा
है । अतः इस प्रन्थरत्नको वतमान रूपमे प्रकाशित देखकर मेरी
प्रसन्नताका हाना स्वाभाविक दै ओर इसके लिये मै गुरुदेव
स्वामी समन्तभद्रका बहुत झाभारी हूँ जिनके वचनीं तथा आरा-
धनसे सुभे बराबर प्रकाश, धैय और बल मिलता रदारै ।
वीरसेवामन्दिर, दिल्ली
फाल्युन कृष्णा दादशी,सं° २०११ जुगलकिशोर मुख्तार
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