समाधि - शतक | Samadhi - Shatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(५)
देह में गई । इन छोटे-बड़े दारीरों के कारण यद्यपि श्रात्मा की प्राकार
रुप श्रबस्था तो बदली पर प्रात्मान जन्मी,न मरी, न उसका कोरर खंड
हृशा श्रौर न उसे कुषं श्राकर भिला । जसे दीपक का प्रकाश छोटे स्थान
में थोड़ा फंलता है व बड़े स्थान में वही ज्यादा फल जाता है झ्ौर यदि
उसे फिर छोटे पात्र में रख दें तो वह फिर संकुचित हो जाता हैं बंसे हो
यह श्रात्मा छोटी देह में संकुचित होकर छोटी श्रौर बड़ी देह में फंल
कर उड़ी हो जाती है ।
इस ऊपर कहे हेतु से यह सिद्धान्त सिद्ध है कि जो उत्पाद व्यय श्रौर
प्रीष्यरूपहौ उसे सत् कहते हे श्रर्थात् जो सत् रूप वस्तु है. वह श्रपने
स्वरूप व गुरोों की श्रवेक्षा सदा रहती है ग्रत: प्रौव्य रूप है परन्तु श्रवस्थाश्रों
को श्रपेक्षा सदा बनती बिगडती रहती है श्रतः उत्पाद श्रौर व्यय रूप
है। ये तीन बाते हर समय हर द्रव्य में पाई जाती हैं कल सवेरे हमने
जिस श्राभके फल को बिलकुल हरा देखा था श्राज सवेरे हम उसे कुछ
पीला पा रहे हैं। हरे से पीले होने रुप उसको यह श्रवस्था हर समय धीरे-
धीरे हुई है, ऐसा नहीं कि एकदम हो हरे से पीलापन हो गया हो भ्रौर
इस तरह यद्यपि समय-समय वह श्रवस्या पलटी है तथापि. वर्ण गुण तो
सदा ही रहा है श्रोर उसका श्रायार जो गुर रूप ग्राम के परमाए हैं वे
भी सदा ही रहे हैं ।
छः द्रव्तों में जीव श्रौर पुदूगल को छोड़ कर चार में सदा स्वभाव रूप
शुद्ध परिरामन ही होता है । झुद्ध जीवों में भी ऐसा ही स्वभाव रूप शुद्ध
परिरमन होता है । शुद्ध पदार्थो मं किसी इतरो विकारक वस्तु के निमित्त
के बिना कोई विकार रूप झ्रवस्था नहीं होती जैसे शुद्ध निर्मल पानी में
तरंगें तो उठती है पर वे सब निर्मल रूप ही उठती है । भ्रशुद्ध दष्यों में
निमित्त ने मित्तिक सम्बन्ध से विकार रूप श्रवस्थायं पलटती है जैसे हरे,
पीले, लाल डांक के सम्बन्यसेही स्फटिक मरिके पाषाया मं हरे, पीले,
लाल रूप विकार होते हे एवं संसार श्रवस्था में कार्माण रूपी सूक्ष्म देह
सहित जीव के ज्ञानोपयोग में मोह कर्म के उदय से ही क्रोध, सान, माया,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...