जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश | Jain Sahitya Aur Itihas Par Vishad Prakash

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Jain Sahitya Aur Itihas Par Vishad Prakash by जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' - Jugalakishor Mukhtar 'Yugavir'

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द कवक - = भ० महावीर श्रौर उनका समय ३ गी ~~~ लिए उन्होंने बड़ी भक्तिसे भ्रापका नाम सन्मति रक्वा & । दूसरी यह कि, एक दिन आप बहुतसे राजकुमारोंके साथ वनमें वृक्षक्रीडा कर रहे थे, इतनेमें वहाँ पर एक महाभयंकर श्रौर विशालकाय सर्प श्रा निकला श्रौर उस वृक्षको ही मूलसे लेकर स्कंघ पर्थन्त बेढ़कर स्थित हो गया जिस पर श्राप चढ़े हुए थे । उसके विकराल कृपको देखकर दुसरे राजकुमार भयविह्वल हो गये श्रौर उसी दशामें वृक्षों परसे गिरकर ्रथवा कूद कर ग्रपने श्रपने धरको भाग गये । परन्तु भ्रापके हृदयमें जरा भी भयका संचार नहीं हुग्रा-भ्राप बिलकुल निभंयचित्त होकर उस काले नागसे ही क्रीडा करने लगे श्रौर श्रापने उस पर सवार होकर ्रपने बल तथा पराक्रमसे उसे खूब ही धरमाया, फिराया तथा निमेद कर दिया । उसी वक्तसे श्राप सोके महावीरः नामसे प्रसिद्ध हए । इन दोनों घटनाश्रोंसे. यह स्पष्ट जाना जाता है कि महावीरमें बाल्यकालसे ही बुद्धि ग्रौर शक्तिका असाधाररा विकास हो रहा था श्रौर इस प्रकारकी घटनाएं उनके भावी अ्रसाघारण व्यक्तित्वको सूचित करती थीं। सो ठीक ही है-- “होनहार बिरवानके होत चीकने पात ।”” प्राय: तीस वर्षकी श्रवस्था हो जाने पर महावीर संसार-देहभोगोंसे पूर्णतया विरक्त हो गये, उन्हें श्रपने ्रत्मोत्कषको साधने श्रौर अपना अन्तिम ध्पय प्रात करनेकी ही नहीं किन्तु संसारके जीवोंको सन्मागमें लगाने श्रथवा उनकी सच्ची सेवा बजानेकी एक विशेष लगन लगी--दीन दुखियोंकी पुकार उनके हृदयमें घर कर गई--प्रौर इसलिये उन्दने, भ्रव श्रौर प्रधिक समय तक गृहवासको उचित न समभककर, जंगल का रास्ता लिया, संपूर्ण राज्यवे भवकों ठुकरा दिया ग्रौर इन्द्रिय ~ -- ~~ -----~----- --- ~---- --- -- वथः = ज कि ---= ~ ~ ५ ॐ संजयस्याथंसं देहे संजाते विजयस्य च । जन्मानन्तरमेवनमस्येत्यालोकमात्रतः ॥ तत्संदेहगते ताम्यां चारणाम्यां स्वभक्तितः । भस्त्वेष सन्मतिदेवो मावौति समुदाहृतः ॥ -- महापुर, प्रवं ७्वां हू इनमेंसे पहली घटनाकां ` उल्लेख श्रायः दिगम्बर प्रन्थोंमें और दूसरी का दिगम्बर तथा इवेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायके अ्रन्थोंसें बहुलतासे पाया जाता है ।




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