अपभ्रंश प्रकाश | Apbhransh - Prakash
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
देवेन्द्र कुमार - Devendra Kumar
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विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ५ |
नागर श्रपभ्रश की है) इसके विपरीत श्रधंमागधी मङतैर श्
मागघी अपभ्रंश में प्राङत-जन-प्रचलित-- शब्दौ की, ठेठ शब्दो दि
प्रवृत्ति अधिक थी । यह परंपरा पूर्णतया सुरक्षित है । जैनो के झर्धमागधी
अपभ्र श या श्वधी भाषा में ठेठ का श्रहण अधिक है| जायसी आदि
दिदी कवियों ने अवधी का जो रूप रखा है उसका कारण केवल यही
नहीं कि उन्हों ने जनता की भाषा ज्यों की त्यो ले ली; प्रत्युत यह भो है
कि उसकी प्रकृति प्राकृत या जन-प्रचलित या तद्व या ठेठ शब्दो की
ही है | चुलसीदासजी ने संस्कृत का, शोरसेनी या त्रज का मेल करके
उसे सर्वसामान्य त्रजभाषा की प्रतिद्वंद्विता मे खड़ा किया । फल यह हुआ!
कि आगे की भाषा ब्रज और अवधी से मिलकर एक मिली-जुली भाषा
हो गई जिस खिचड़ी भाषा का व्यवद्दार हिंदी के रीतिकाल या श्डंगारकाल
के अधिकतर कवियों ने किया ।
पश्चिमी अपभ्र श तो नागर हो गया, पर पूवीं अपश्रश याम्य ही
जना रहा, उसी प्रवर्ति दी वेसी थी । विद्यापति ठङ्कुर ने कीतिलता मे
जिस प्रकार की भाषा का व्यवहार किया है उसमें पश्चिमी प्रवृत्ति आई
तोहै पर पूर्वों अर्थात् ठेठ प्रवुत्ति त्ररानर मिलती है । झपभ्रश का
चाञ्य अधिक सामने आने पर इसका विस्तृत विवेचन करने का झवसर
अधिकाधिक मिलता जाएगा ।
प्रपञ्चश का पूरा समय दो भागो मे विभाजित किया जा सकता ई ¦
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उसका एक तो पूवकालिक रूप है श्रौर दूसरा उत्तरकालिक । पूर्वकालिक
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