नयनसुख विलास भाग - 1 | Nayanasukh Vilas Bhag - 1

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Book Image : नयनसुख विलास भाग - 1  - Nayanasukh Vilas Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नयन सुख विलास । [७ अध्याय ४० है । हिने पूर्व भागके २८ झअष्यायोकी सूचना ` घ भांति ६- अर्थात्‌ इष पूवं भाग्ये १७ अध्याय तो सेंने अपने शिष्य चन्द्नङाड सेठ बागप्रस्थ निवाखीकी फर्मोप्रशो राग- रागनि्योके भन्दाजपर रचे ये -तिन्मे बुषा रगनियोि अन्द्नराख्टीका नाम मनि मोगष्टो जगद लिखा है । भोर १९ अध्याय सपनी इच्छाम खै सावर्मीजिनों$ धम ध्यान योज् रचिफुर पूर्व भागकू' पुरा किया है लो. जानोरो । लगे उत्तर भागढ़े १२. भष्याय हैं तिमकी सूचना उत्तः भागके प्रारस्थमें दिखेंगे तद्दां देखा लेना । अथ पूतं भागक २८ सध्यार्योष्ठ प्रथक्‌ प्रषक्‌ सूुषना ढिखये हैं । न्द वणन अध्याय प्रथम भष्यायमें प्रन्थोत्पत्ति छारण पूवं पीटि 1 दौर गायन सिखा हे तो: गवेय के । दुशदोषोंका बर्णन ऐ। दूजे ८ष्प्राय्ने मंगडायरणफ़े ३४ दोहे तेर्द धरद । रो चवरम। घो उने । तीन भरषी ठाख्छे ठीन पद्‌ । सीजे दष्यायमें प्रौदीखी धषाडा द्मषपैत्‌ चोवोलों महारापके २४ पद्‌ {ए मसे है कि भ्ोराश्रिष्ो खात वरो होती है णोरं शीगोक् दाम सात ही होते हैं । मर्भाद एर ए म्ाराजके पदे गनेष्य ठर दष घडोढा काढ बांदा हे । जें भादिनाभडीष्च पद फ'ठाडेपें है तो बजितनाधजाका पद सेएदीमें है । ऐढ़ें तीभे्रष्ा लाम रागक्ठा नान । रागका समय । सुरदद्े लेय स्याम क| स्यामसे प्रभाव ठक । झमय झमयके रागो बदुढ़ता बढ़ा गया दे। पुन: चौथे श्ष्यायम गुर मभनाष्ट




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