जैन जगती | Jain-jagti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जेन-जगती
अतीत खण्ड
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सङ्कलाचरण
हे शारदे ! उर-वौण पर तू कमल-पाणि पसार दे,
सच दोर है तार वेसर-प्राण इनमे डार दे।
मैं वदन-सरवर-सुस-कमल पर सुमन-आसन डर षू
तू मन-मनोरथ सार दे तन, मन, चचन, उपहार हूँ ॥ १ ॥
लेखनी
पारस-विनिर्सित लेखनी ! सुक्ता-मसी में घोल हूँ
कल हंस मानस चित्र दे--हृदू सार झपना खोल हूँ
चह यान हो, पिक-तान हो, वीणा सनोरम पाणि दो
अरविद-उर तनहार हो, भ्यरविद' पर बर पाणि द्ये ॥२॥
उपक्रमणशिका
किसका रहा वेभवद वताम एक्सा सखव काल से;
जोधा कभो उन्नत वही बिगड्ा-हुया हे हल मे।
इस दुर्दिविस मे बह कथा हे लेयनी ! लिखनो तुमे;
पाषाणु-उर इस हो गये; पर पद करना है तुमे ॥ ३ ॥
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