प्रभु यीशु स्प्रिष्ट का सुसमाचार | Prabhu Yeshu Isprisht Ka Susamachar

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Prabhu Yeshu Isprisht Ka Susamachar by Arvind Kumar - अरविंद कुमार

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४. पव्ने 1] मत्ती । १९१ < २८ परस्तोगमन मत कर । परन्तु मे तुंम से कहता - ह कि जे! कोई किसो स्त्री पर कुददच्छा से द्ृष्टि करे वह अपने र मन में उस से व्यभिचार कर चुका है । जो तेरी दहिनी आंख तुमे ठोकर खिलाबे ते उसे निकालकें फेक दें क्योंकि तेरे लिये भला है कि तेरे अंगें में से एक अंग नाप ३० होवे और तेरा सकल शरीर नरक में न डाला जाय। और जे तेरा दहना हाय तभ्ते ठाकर खिलावेतेा उसे काटके फक दे क्योंकि तेरे ल्यिमलाहैकितेरे रगामेसे सक अंग नाश होवे ओर तेरा सकल शरीर नरक में न डाला - जाय । ३९ यह भी कहा गया कि जो कोई अपनी सती को त्यागे ४२ से! उस को त्यागपत देंबे। परन्तु में तुम से कहता हूं कि जो कोई व्यभिचार को छोड और किसी हेत से अपनी स्ती के त्यागे सो उस से व्यभिचार करवाता है और जे कोई उस त्यागी हुईं से विवाह करे से। परस्तीगमन करता है । २३ फिर तम ने सना है कि आगे के लोगों से कहा गया था कि झूठी किरिया मत खा परन्‍्त परमेश्वर के लिये अपनी ३४ किसरियाओं को परी कर! परन्तु में त॒म से कता इं कोई किस्य मत खाओ न स्गं को क्याक बह इष्वर का 2२५ सिंहासन दै . न घरतो की क्योंकि बह उस के चरणों की पीढ़ी है न यिरूशलीम की क्योंकि वह महा राजा का नगर ३६ है । अपने सिर की भी किरिया मत खा क्योंकि त-खक ` ३७० बाल के। उजला अथवा काला नहीं कर सकता है। परन्तु तम्हारी बातचीत दा हां नदो नदो हवे. जा कष्ट इन से अधिक है से। उस दुष्ट से होता है। इ तम ने सना है कि कहा गया था कि आंख के बदले ३ आंख और दांत के बदले दात पर में तम से कहंता र




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