कूर्मवंश यशप्रकाश अपर नाम लावारास | Kurmavansh Yashaprakash Apar Nam Lavarasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महताब चन्द्र खारैड - Mahatab Chandra Kharaid
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका $
स्वामी भी लावाकी सहायताथ सम्मिलित हुए। कर्णसिंहके एक भाई अलवरमें थे।
उनको भी सूचना भेजी गई। वह अपनी और अलवरकी सेना सहित आये। मारोठके
मेडतिया राठौड सुजानसिंह भी इस युद्धमे अपने दलवल सहित सम्मिलित हुए। युद्ध आरभ
हो गया। इधर पन्नासिहने टोकको जा घेरा और वहा लूटमार करने लगा। यह समाचार
नवावकों भी मिले। युद्ध भयकर होता जा रहा था। नवावका सेनापति मसूरखा मारा गया।
तब कुतव्वीखाने बड़े कौशलसे हमला किया। इस हमलेको सुजानसिंहके दरोगा हाजर्याने
वडी वीरतासे रोका और अतमें वह वीरगतिको प्राप्त हुआ। इधर कुतन्वीखा भी मारां
गया! अव युद्धकी वागडोर स्वय नवावने संभाली । बहुत भयकर युद्ध हुआ। मुसलमानी
सेनाके पाव' उखड गये। वह छिन्नभिन्न हो कर इघर उधर भाग निकटी । नरूकोकी सेनाने
बहुत दूर तक उनका पीछा किया और छोडी हुई युद्ध-सामग्री को अपने अधिकारमें करके
वापिस लौट आई ।
इसके अनन्तर कविने अपना परिचय तथा ग्रथनिर्माणका कारण बताया हैं।
ऊपर कुर्मवदायशप्रकाश्के (कावारासा) के पाचो प्रसगोका जो कथासार दिया गया है,
वह सत्य घटनाओंके आधार पर, कवि द्वारा कल्पना शक्तिसे काव्यत्वके रूपमे, प्रस्तुत किया
गया हैं। इनमें प्रथम प्रसगकी घटनाको छोड कर वाकी चारो प्रसगकी घटनायें कछावाहोकी
नखूका शाखा और मुसलमान लुटेरोंके मध्य हुए युद्धोंके वर्णनकी हैं। इनका परिचय देनेसे
पूर्व, तत्कालीन परिस्थितियों और वातावरणका सिहावलोकन कर लेना उपयुक्त होगा।
अठारवी शताब्दीका अतिम चरण मौर उन्नीसवी शताब्दीका आदि चरण, सम्पुर्ण भार-
तीय जनताके लिए दुर्भाग्यपूर्ण, अज्ञात एव निकृष्टतम था। देशमें चारो ओर लूटमार एव
अराजकताका साम्राज्य था। वगालमें ईस्ट इंडिया कम्पनीके कर्मचारियोंके अत्याचारोंसे
जनता पिसती जा रही थी। मध्यप्रदेश और राजस्थान प्रात मराठे, #पिडारी ओर पठान
+ पिंढारी लोग दक्षिणमें कर्णाटकफे निवासी थे । घास काट कर वेचना इनका मुख्य श्रजीविका काधं था ।
ये पदिले हिन्दु थे वादमें सुसलमान दो गये । ये गोमास नहीं खाते ये शरोर देवताशरोंकी पूजा श्रोर जत उपवास भी
करते थे । इनमें श्रनेक जातिर्योके मिल जानेसे यह् सकर जाति वन गं! कहते हैं कि ये लोग पिंड नामक शरावका
श्मधिक सेवन करलेसने पिटारी कहलाने लग गये । बादमें डन लोगोंने ्रपनी श्राजीविकाका साधन दस्युदृत्ति बना लिया
था 1 खौरगजेके शासनकालमे इन पिंडारी दस्युश्रोंका नेता पुनप्पा वहुत प्रसिद्ध हा दे । मुगल सेनाधोंसि इसके कई
युद्ध इुए थे । जव सुगल दक्षिणम श्रपना श्राधिपत्य फला रहे थे उस समय ये पिंडारी महाराष्ट् सेनाम मरती हो गये
ये। वीरे धीरे ये लोग मयकर श्रत्याचारी भोर दारुण प्रजापीढ़क दो गये ये । पानीपतकी तीसरी लढा चिंगली और
दल नामक दो सरदार पद्रह हजार सवारोके साथ उपस्थित ये । पेशवा वाजीराव प्रथमने जव मालवा पर श्नाक्रमण किया
था, उस समय गाजीउदीन पिंडारीने पेशवाकी सहायता की थी । इसी समयसे ये लोग मालवार्म वस गये थे । मालवामें
इनसे वसनेके पश्चात, तुकोजीराव शोल्कर श्र महादजी सेंधियाने इन लोगोंको अपनी सेनामें भरती कर लिया था|
तभीसे इनके दल दोल्करशाही श्र सेंधिया-शाहीके नामसे विख्यात दो गये थे। तलवार और माला इनके मुख्य श्र
ये । पूद्रह न्यक्तियोंके दलके पीछे एक वदूक भी रन लोगोंकें पास थीं । घोड़ेकी सवारीमें ये लोग बुत ही तेज थे। ये
User Reviews
No Reviews | Add Yours...