सल्तनत कालीन सामाजिक तथा आर्थिक इतिहास | Saltanat Kalin Samajik Tatha Arthik Itihas

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Saltanat Kalin Samajik Tatha Arthik Itihas by राधेश्याम - Radheshyam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'दिल्‍ली सल्तनत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि र्ठ संपर्ष के बाद उसे अधिकृत कर लिया 1०१ १३०५ ई० ड उसने मालवा,*२ ३०८ ई० मे सिवाना,५उ १३११ ई० मे जालौर विजित कर लिया 1** जालौर. के पतन के पश्चात्‌ सम्पूर्ण उत्तरी भारत उसकी मुट्ठी मे आ गया । उत्तर पश्चिम मैं - उसकी सेना सिंध व मुल्तान तक व उत्तर पूर्व में नेपाल की तराई तक पहुँची । इसी काल में उसने मंगोल आक्रमणों निष्फल वनाया । इस समय दक्षिण में चार प्रमुख हिन्दु राज्य ये--चिन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण मेँ देवगिरि का ` राज्य, उसके दक्षिण पूर्व भें तेलंगाना का राज्य जिसकी राजधानी वारंगल थी, तेलंगाना के दक्षिण-पर्चिममें 'होयसलो द्वारा शासित द्वारसमुद्र का राज्य त्तथा सुद्र दक्षिण में पाण्डयों द्वारा शासित मावर का शक्तिशाली राज्य था। इन विभिन्न राज्यों पर मलिक, काफुर ने आक्रमण कर्के उन्हें कर भेजने के लिए विवश किया ।** दक्षिण के प्रत्येक अभियान से वह अपार धन, आशभूपण, हीरे-जवाहरात आदि लेकर दिल्‍ली लौटता था ।** डॉ० किशोरी सरन लाल के अनुसार सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के राज्य की सीमाएँ इस प्रकार थीं--उत्तर-पश्चिम में काबुल व गज़नी तक; दीपालपुर गाज़ी मलिक के अन्तर्गत था, मुल्तान व सिविस्तान पहले जाफर खाद उसके वाद मलिक काफुर के अन्तर्गत थे, 'पंजाब, उत्तर प्रदेश व सिंध केन्द्रीय शासन के अन्तर्गत थे । राजपुताना की विभिन्न रियासते करद का भुगतान कर रही थी, पूर्व में उसके साम्राज्य की सेना बनारस व अवध से आगे नहीं थी । विहार व वंगाल दोनों स्वतंत्र थे । मध्य-भारत में चंदेरी, 'एलिंचपुर, धार, उज्जैन और मण्डू केन्द्रीय प्रशासन द्वारा नियुक्त अधिकारियों के अन्तर्गत थे । गुजरात भी सल्तनत के अवीन था । दक्षिण के चार हिन्दू राज्यों में केदल पाण्ड्य राज्य को छोडकर लगभग सभी राज्य केन्र को करद भेजते रहे । * “ सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के परलोक सिधारते ही न तो उसका सा स्राञ्यवाद मिट्टी में मिला और न ही उसके साम्राज्यवाद की दुर्दशा उसके उत्तराधिकारियों की चारिविक दुर्वलताओं के कारण हुई । उसका पुत्र कुतुबद्दीन मुबारकशाह खिलजी, यद्यपि मालवा से लाए हए वराद हसन, भिरे उसने खुसरो खाँ की उपाधि से विभुषित ~ ६५ क्रिया, पर बुरी तरह से आसक्त था, किन्तु फिर भी. जन्य अमीरों ने साम्राज्य के स्वरूपम को त्रिगडने न दिया । मलिक जाफर खान ने गुजरात मे सुव्यवस्था बनाए रक्‍्खी । उसके बध के पश्चात सुल्तान ने खसरो खान के भाई हिसामउदीन को गुजरात का बली नियुक्त करिया, किन्तु वह वहं का प्रशासन संभालने मे असफल रहा । गुजरात कै अमीरों ने उसे पकड कर दिल्‍ली भिजवा दिया ।** तदुपरान्त बहाउद्दीन कुरेंश्ी को सद्र-उल-मुल्क की उपाधि प्रदान करके गुजरात भेजा गया ।** उसने वहाँ जाकर गुजरात को दिल्‍ली से पृथक होने से बचा लिया । इसी प्रकार दक्षिण में आईन-उल-मुश्क ने देवगिरि के शासक रामदेव के दामाद हरपालदेव को दिल्‍ली से प्रथक न होने दिया । जब आईन-उल-मुल्क को दिल्‍ली बुला लिया गया तो सुल्तान कुतुवुद्दीन मुवारकशाह ने स्वयं देवगिरि राज्य पर आक्रमण कर्‌ भप्रल १३१७ ई० में उसे, निजित कर॒ सल्तनत में मिला लिया ! वह के शासकः हरपाल देव को पकड़ लिया




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