चेतचन्द्रिका | Chetchandrika

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Chetchandrika by गोकुलनाथ - Gokulnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चेतचन्ट्रिका । श्३ प्रस्तुतांकुरा एक द प्ररजायोक्ति अमन्द । | धर ड्ह नि कि दे व्याजीत्ति अछप के तीनि सेद दरदन्द ॥५३॥ ये जो ं एक बिरोधाभास है घट बिभावना होति... । | बिसेषघोक्ति इक इक कहै आमसम्भव को जोति॥ आसंगति है तोनि औ सात बिषस के रुप । तौनि भेद सम के मत एक बिचित्र अनप॥ ४५५ अधिक दोइ है अल्प इक अन्योन्या है एक । | बिसेसोक्ति के कहत हैं तौनि भेद गहि ठैक॥५६ | दोड् कद्त व्याघात कवि कारनमाला एक ।. एक भेद एकावलो माला दोपक एक ॥५७॥ सार एक क्रामिका सुदइक द परजाय सुरोति । | परिह्ठत एक कहें सुकबि परिसंख्या इक रोति॥ | एक बिकल्प कहें सुकवि दंहि समुच्चे भेद । कारकदट्ौपक एक है इंक समाधि हरखेद॥४५८. | प्र्यनोक बरनन करत अलड्ार इक रोति काव्यार्धापति एक बिघ कच्त सुकबि करिप्रौति॥ | काव्यलिंग इक कहत हैं दे अर्थान्तरन्यास.. । | ३. एक विकस्वर एक बिध है प्रीढ़ोति उजास॥६१ |




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