जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश खंड 1 (1656) एसी 5501 | Jain Sahitya Aur Itihas Par Vishad Prakash Vol 1 (1656) ac 5501

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भर महावीर और उनका समय | [1 ~~~ ~ अर्थात्‌ देवौका भागमन, भाकादाने ममन श्रौर चामरादिकं ८ दिव्य चमर, छव, सिहाधनः, भामंडलादिकं ) विभूतिर्योका श्रस्तित्व तो मायावियोंमें--इन्द्र- जालियोंमें--भी पाया जाता है, इनके कारण हम भ्रापको महान्‌ नहीं मानते श्र न इनकी वजहसे भ्रापकी कोई खास महत्ता या बड़ाई ही है । भगवान्‌ महावीरकी महत्ता और बड़ाई तो उनके मोहनीय, ज्ञानावरण, दशनावरण भौर भ्न्तराय नामक क्मोका नाश करके परमशास्तिकों लिये हुए क शुद्धि तथा शक्तिकी पराक्राष्ठाकों पहुँचने झौर ब्रह्मपथका--अ्रहिसात्मक मोक्ष- मार्गका--नेतत्व ग्रहण करनेमें है--अझ्रथवा यों कहिये कि श्रात्मोद्धारके साथ- साथ लोककी सच्वी सेवा बजानेमें है । जैसा कि स्वामी समन्तभद्रके निम्न वावय- से भी प्रकट है :-- रवं शुद्धिशक्त्योरुदयस्य काष्ठा तुलाग्यतीतां जिन शान्तिरूपाम्‌ । अवापिथ ज्रह्यपथस्य नेता महानितीयत्‌ प्रतिवक्तमीशाः ॥ ४ ॥ --युक्त्यनुशासन महावीर भगवानुने प्राय: तीस वर्ष तक लगातार अनेक देश-देश।न्तरोंमें विहार करके सन्मार्गका उपदेश दिया, श्रसंश्य प्रारिथोके अ्रज्ञानन्धकारको दूर करके उन्हें यथाथ॑ वस्तु-स्वितिका बोध कराय, तत्त्वाथेको सम काया, भले दूर की, अम मिटाए, कमज़ोरियाँ * हटाई, भय भगाया, भ्रात्मविदवास बढाया, कदाग्रह्‌ दूर किया, पाखण्डबल घटाया, मिथ्यात्व छुड़ाया, पतितोंको उठाया, झन्याय- झत्याचारकों रोका, हिसाका विरोध किया, साम्यवादकों फैलाया श्रौर लोगोंको स्वावलम्बन तथा सथमकी शिक्षा दे कर उन्हें भ्रात्मोत्कषके मार्ग पर लगाया । इस तरह श्रापने लोकका भ्रनन्त उपकार किया है श्रौर झापका यह विहार बड़ा ही उदार, प्रतापी एवं यशस्वी हुभा है । इसीसे स्वामी समन्तभद्रके स्वयंभू- स्तोत्रमे (गिरिभित्यवदानव तः” इत्यादि पद्यके द्वारा इस विहारका यत्किचित्‌ उल्लेख करते हुए, उसे “ऊर्जितं गतं,” लिखा है । +~--------- ~ ~ --~ - ---- ------~-----~ ® अनावरण -देशंनावरणके भ्रमावसे निमंल जान-दश्चनकी भविभूतिका नाम शुद्धि भौर ्रन्तराव क्के नारसे वींलन्धिका होना शक्ति है भौर आहनीय कर्मके भभागसे भतुलित सुखकी प्रातिका होना परमशान्त? है ।




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