शिव संकल्प का विजय | Shiv Sankalp Ka Vijay

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Shiv Sankalp Ka Vijay by श्रापाद दामोदर - Shripaad Damodar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चेदसें मनकी अपूर्व ओर विछक्षण झक्तिका वर्णन हे । देखिए-- यज्ञाग्रतो दुरमुद्‌ति देव तढु सुप्तस्य तथेवेति ॥ दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तने मनः शिवसंकट्पमस्तु ॥ यजु. ३४1१ जो देव दिव्य दक्तिसे युक्त मन जायूत अवस्थासें दूर दूर जाता है और निश्चयसे वह सुप्तस्थ सोते हुए भी वेसा ही दूर चछा जाता है यह दूर जानेवाछा ज्योतियोंका एकमात्र प्रकाशक मेरा सन झुभ विचार करने वाला होवे. इस यजुर्वेदके मंत्रसें मनकी शक्तियों वर्णित हैं । इस प्रकार चारों वेदॉसें मनकी दाक्तियोंका वर्णन करनेवाले अनेक मंत्र हैं । इन मंत्रोंका मनन करनेसे तथा मंत्रके विधानों की सत्यता प्रत्यक्ष अनुभवके व्यवह्दारोंसें देखनेसे चेदके उपदेशका मददत्व व्यक्त हो सकता हे । उक्त संत्रसें सन के सिख गुण लिखे हैं-- १ दूर उदेति ।--. ---मन जायूत अवस्थामें दूर दूर के स्थानॉपर चला जाता हे । २ सु्स्य तथा प्व पति । ...सोने वाठेका मनसी उसी श्रकार दूर दूरके स्थानोंपर चढ़ा जाता है । ३ दूर गम ।--.दूर दूर के स्थानपर चला जाना यह मनका स्वामा- बिक घमेददी हे । ४ ज्योलिषां ज्योति+ । -.- तेजोंका तेज मन है. अर्थात्‌ सन तेजस पदार्थ है । विद्युत तत्वका सन बना हे । ५ एक । - . -- मन एक है । अब इन बातोंका अजुसव के प्रमाणोंसे निश्चय करना हे । जायत अवस्थामें मन दूर के स्थानोंमें चला जाता हे यह मंत्रका प्रथम बिघान है । कई विद्वान व्याख्याता कहते हैं कि सन एक क्षणसें सूयका




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