रक्ता मण्डल | Rakta Mandal

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Rakta Mandal by दुर्गाप्रसाद खत्री - Durgaprasad Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चोट पर चोर पचिटी वो बाद चह प्रकान के पास आकर किनारे से खयी ओर उस परसे कई भादमी उतरकर इस सकास की तरफ एड | उन्हें देख नोजवान थी अपनी जगह से हटा और नीचे की मंजिल से उतर सदर दर्वाजे के पास जा पहुंचा | उसी समय नाव पर से उतरे हुए भादमी मी जो सशिनती में चार थे चहदां आ पहुंचे । उंगलियों के इशारे से मोजवाम मे उनसे कुछ बास की जिसके बाद वे खय सीद्ियां चढ़ ऊपर आा गये | नोजचान सर्भो से गे मिला और तब सभी को ऊपर जलने को कह कर आप एक कोठड़ी में घुल गया जो द्वाजि के चगल ही में पड़ती थी इस कोठड़ी की दौबारों में और फर्श में भी तरह तरह के कल पुर्जे लगे हुए थे 1 नोजवान दोवार में लगे एक बड़े पहिये के पान पहुँचा शीर उप्क सुद्टा पकड़ कर घुमाने लगा । पंदह था चीस देफें सूमने के याद चह पहिया रुक सपा और नॉजवान कोठड़ी के याहर निकल कर ऊपर की मंजिल के उसी कमरे पे जा पहुंचा जिसमें चद पढिले बैठा था और जिसमें थे चारो आदमी भी जा पहुंचे थे जो सोटर बोट पर से उतरे थे। नोजघान भीं उन्हीं के पास जा चेठा और दोला कहो कया हुआ १ चासे में से एक बोला जैसा दम खोगों मे सोचा था ठीक बे घाही उतरा नोजवान० । चंद सका का है | हर यह है । सा कल कार उस घाइमी से शक बड़ा सा सम रे




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