दिव्य मधुपर्व | Divya Madhu Purav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रप ८ प
सधघुपय ]
= क
८,
स्थान बरद जाने छोर ये सन वायु से स्फुरिन दरया त्रगाकी
माति कोपने रद जाते । कुछ ही इस में उनकी ससी एहै धीवा;
य्रस््र रहित भजन्ग्ड, तोपरपृण वल म्थिन प्रर नध्यी पीट पर
म्द घिन्द दुलक धारये बट निकलीं । उनसे शरीर पर
स्थानां मलान रयाय पुट फर रा चर गया । श्ता स्वेट में
मिज्ञकर फन लाये से उसके शरीर सर से पुन जान पड़स लगे 1
मदसिनापनि क स्कः स यास् नेनृय वनक युद
कंश समात्रदोने का गकर च्या । नुयक्त परीक्षा के लिये
मदासनापसि क प्रासन के सन्पुख उपत्वित दुबे । ायुप्सान
सकुद श्र प्रधसन के शोप कवते द्रा रक्तचित थे ।
आयुष्मान व्रृष्ठप क शोर पर तीन श्र मोप वचकौ क शारीर
पर चार-चार !
रणपरिपद के सदस्यों से परामश कर मढासनानी बोले--
गण परिपट घोर जन सुने ! व्यायुप्सान सकूर श्ार प्रथुसेन
शस्त्र संचालन में विशेष कंीशलन प्रकट किया । सरस्यों के
विचार मे प्रसेन काटी ग्थान प्रथम रोता परन्तु प््रायुप्मान
न श्रपने वाम पततम शनेक व्यथे प्रहार कर छापनी शाक्ति का
प्रपव्यय किया । प्मायुप्मान प्रथुसेन से सतकंता की इस न्यूनता
के कारण गण सश्र खड्गधातै का सस्मान श्रायुप्मान सकृद
कोदेता द!
श्वेत पुष्प र हरित किसलय से वने मुद्कट की श्योर सकत
कर उन्होंने कहा--“नगरश्री; देवी मल्लिका की शिष्याओ में जो
युवती कला की प्रतियोगिता में 'सरस्वती-पुत्री' का सम्मान प्राप
करेगी चद्दी अपने हाथों यह मुकुट सवेश र खड्गधारी युवक को
प्रदान करेगी 1 । ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...