दिव्य मधुपर्व | Divya Madhu Purav

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Divya Madhu Purav by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रप ८ प सधघुपय ] = क ८, स्थान बरद जाने छोर ये सन वायु से स्फुरिन दरया त्रगाकी माति कोपने रद जाते । कुछ ही इस में उनकी ससी एहै धीवा; य्रस््र रहित भजन्ग्ड, तोपरपृण वल म्थिन प्रर नध्यी पीट पर म्द घिन्द दुलक धारये बट निकलीं । उनसे शरीर पर स्थानां मलान रयाय पुट फर रा चर गया । श्ता स्वेट में मिज्ञकर फन लाये से उसके शरीर सर से पुन जान पड़स लगे 1 मदसिनापनि क स्कः स यास्‌ नेनृय वनक युद कंश समात्रदोने का गकर च्या । नुयक्त परीक्षा के लिये मदासनापसि क प्रासन के सन्पुख उपत्वित दुबे । ायुप्सान सकुद श्र प्रधसन के शोप कवते द्रा रक्तचित थे । आयुष्मान व्रृष्ठप क शोर पर तीन श्र मोप वचकौ क शारीर पर चार-चार ! रणपरिपद के सदस्यों से परामश कर मढासनानी बोले-- गण परिपट घोर जन सुने ! व्यायुप्सान सकूर श्ार प्रथुसेन शस्त्र संचालन में विशेष कंीशलन प्रकट किया । सरस्यों के विचार मे प्रसेन काटी ग्थान प्रथम रोता परन्तु प््रायुप्मान न श्रपने वाम पततम शनेक व्यथे प्रहार कर छापनी शाक्ति का प्रपव्यय किया । प्मायुप्मान प्रथुसेन से सतकंता की इस न्यूनता के कारण गण सश्र खड्गधातै का सस्मान श्रायुप्मान सकृद कोदेता द! श्वेत पुष्प र हरित किसलय से वने मुद्कट की श्योर सकत कर उन्होंने कहा--“नगरश्री; देवी मल्लिका की शिष्याओ में जो युवती कला की प्रतियोगिता में 'सरस्वती-पुत्री' का सम्मान प्राप करेगी चद्दी अपने हाथों यह मुकुट सवेश र खड्गधारी युवक को प्रदान करेगी 1 । ।




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