विचित्र निदान | Vichitra Nidan

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Vichitra Nidan by आरिग पूडि - Aarig Pudi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ या न हो कुछ भी हो मद जिन्पीमै्रखी हो हो गई है गौर किया कया झब तक ध्रव मेरी हवश पूरी हो रही है न जाने कितने लोग मेरी युशी पर जले जलें । मुझे क्या ? गुजरते-गुजरते वह दिन भी ब्ाया जब वे. सज्जन झाये । डॉ० सुशीला स्टेशन पर उन्हें मिलने गई । छोटा-सा स्टेशन गाडी भी बडी न थी दो वार गाड़ी छान गई किसी को देखती ग्रौर फोटो से उसकी शक्ल मिलाने की कोशिश करती । कहीं किस्मत में फिर खिलवाड़ तो नहीं किदा है ? पद कया ध्राशभ्ये उपजी घोर उपजते ही उन पर पाला बरस वह यो सोच रही थी कि एक व्यक्ति ने प्राकर पुदा श्राप कया डॉ० सुशीला का सकान जानती फ् जी ग्राप ह भाप ही कया पालघाट से ग्रा रहे हैं ? जी पापको क्या ढॉ० सुशीला ने भेजा है ? मेरा नाम ही डॉ० सुशीता है डॉ सुशीला की श्रावाज इस तरह खिच रही थी जंसे वह पराह भर रही हो । वह ढहनसी गई । मन का उफान यूँ थमा जंसे किसी उबलती चीज के नीचे से ध्ाग निकाल दी गई हो । तो भाप हैं डॉ० सुशीला हाँ-हाँ भ्रापकी शक्ल हुवहू वैसी ही है जंसे कि फोटो में थी वह व्यक्ति मुस्कराता-मुस्करातां वह रहा पा घर डॉन सुशीना सोच रही थी एक तो धोखा तिस पर ताना । वह नाक-भौं चढ़ा रही थी । बह म्रच्छा भोला खूबसूरत चेहरा बिल्कुल तहियाया हुप्रानमा था । सुररियाँ ही मुर्यिोँ । नाटा कद डॉ० सुशीला से दो इच कम । भुना काला रंग नाक-नकशा बिल्कुल ठीक पर ऐसा जंसे उनमे दरारें पड गई हो । साठ-पैसठ का खुमट बुढऊ 1 डॉ० सुशीला भागे-ध्रागे इस तरह चल रही थी मानो हिगी हे पिण्ड छुाकर भागी जा रही हो 1 पर वह पेसठ वर्ष




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