सब स्वार्थी हैं | Sab Swarthi Hai

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Sab Swarthi Hai by आरिगपूडि - Arigpudi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निरंजन के विचार भिन्‍त-भिन्‍न दिश्वाओं मे दौड़ने लगे। वे तरह-तरह के अनुमान करने लगे | पर वहा पुलिस क्यो थी, इसका उत्तर नही पा रहे थे। उन्होने फिर ध्यान मे देखा | पुलिस वालों की वरदी से लगता था कि वे अभी ही आये हैं। चुस्‍्ती थी उनकी चाल मे, फिर दूर देखा, चार- दिवारी के बाहर, जहां कभी बड़े-बड़े पेड रहे होगे, दो-चार जीपें खंडी थी | मामला उलझा हुआ लगता था । 'क्या है ?' “कही ये प्रसाद के लिए तो नहीं आये हैं ? उसने भी क्या किया हैं कि वे ভর घर को यू घेर लें ? यहां जो नहो सो कम | अगर आदमी को पकडना ही हो, तो पकटने के हजार वहाने मिल ही जाते हैं। पहले पकड़ो फिर देखें क्या होता है। लेकिन प्रसाद कोई अदना आदमी तो है नही कि आये और मुम्कें बांधकर चौकी ले गये। बडे धर का बडा आदमी है, उसके इतने सारे लोग, इतनी वड़ी साख है कि वे उस पर आंच नही आने देंगे। फिर कया बात है ? निरंजन बाहर जा सकते थे,खुद्द पुलिस वालों में पूछ सकते थे। कितु बसा करना उनको जोखिम से साली न लगा। 'दुनिया भर के प्रध्न किये जायेंगे। मैं अनिधि ही तो हु, वह भो करीव-करीव अनजाना ही | प्रसाद क्यों नही आया है ?! उन्होने जानना चाहा । पर सारी जगह इस तरह सुनसान थी कि पुलिस वालों बी गश्त के बावजूद सव सोने लगते थे । किसी को क्या उठाया जाये ? उठ जायेंगे, तो खुद आयेंगे। पुस्तक पढ़ कर उन्होंने अपने को निश्चित करना चाहा, पर निश्चित नहीं हो पाते थे। पॉकेद रेडियो सुनता चाहा, पर उसमे से भौ कोई अजीव सा संगीत भा रहा था । कोई समाचार नही, आघ घटे तक कही से कोई खबरें आने की आया न थी। वे अपने कुतूहल को कावू न कर पा रहे थे। अजीब पशोपेश में थे। वे नित्य कृत्यो मे लग त्तो गये, लेकिन वाहर गश्त करने वाले पुलिस- मेन, उनका पीछा करते-से मालूम होते थे। ये लोग भी क्या हैं कि बाहर जहर कुछ ने कुछ हुआ होगा, और ये घोडे बेच कर सोये हुए है । वे पझुंझलावे। आखिर उन्होने कमरे मे रखी घंटी वजा ही दी । वही लडकी कमरे में आयी । सब स्वार्वी है / ११




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