सत्यार्थ प्रकाश | Satyarth Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छः नमक, मी शक प्रथमसमुझास: ॥ व नल पल रब पिन ४. ल भाव तो उसका स्वामी उस पर कुद्ध दोकर कद्देगा कि तू नि्ुद्धि पुरुष है, समनसमय मे लवण चार भाजनकाल में घोड़ के लाने का क्या प्रयोजन था ”? तू मरकरणवित्तू नह्दीं है नद्दीं तो जिस समय में जिसको लाना चाहिये था उसी को लाता जो तु को प्रकरण का विचार करना छावरयक था वह तूने नहदीं किया इससे तू मुखे है मरे पाप से चला जा । इससे क्या सिद्ध हुआ कि जहां जिस- का प्रदण करना उचित हो वहां उसी अथे का अहण करना चाहिये तो ऐसा ही इस छोर साप सब लोयों को मानना 'ओोर करना सी चाहिये || ॥ अथ मन्त्राथे: ॥! सोइम्‌ खस्व्रह्म ॥ १ ॥ यजुः० अ० ४० । मं० १७॥ देखिये वेदों में ऐसे २ प्रकरणों में 'झोमू” आदि परमेश्वर के नाम आति हू । घ्ोसित्येतदचरसद गीथमपासीत ॥ २ ॥ छान्दाग्य उपानषद्‌ स० १ ॥ ्ोमित्येतद चरसिद ५ सर्व ॥ ३ ॥ मारड्क्य० स० १ ॥ सवे वेदा यत्पदसासनान्त सवाण च यद्ठदान्त । यादच्छ्धन्तां त्रह्मचय्य चरान्त तत्त पद सग्हण ब्रबास्या- सित्येतत्‌ ॥ ४ ॥ कठोपनिषत्‌ । वीं २। स० ९४ ॥ प्रशासितारं सर्वेघामणी यांसमखारॉप | रुक्सामं स्वप्तघीगम्यं विद्यात्त पुरुष परम्‌ ॥ ४. ॥ एतसेके वदन्त्यर्गि मनुमन्ये प्रजापतिम्‌ । इन्द्रमेके परे प्राणमपरे ब्रह्म शाश्वतम ॥ ६॥ अभ १२। शलो० १९२ । १९३ थे स ब्रह्मा स विष्णुः स रुद्ररस शिवरसोचरस्त परमः स्वराट। अनन्त कु उन




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