खोजकी पगडंडिया | Khojkii Pagdandiyana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समभकर रददीके कमरेमे डाल दी गई है। श्रीमत साहित्यकी कितनी सीमातक उपेक्षा कर सक्तेहं मुके आज ज्ञात हुआ । श्रीगोकुलचन्दजी कोचरने बडे परिश्चमयूरवंक खोजकर मुभ भिजवाया, तदथं मे उनकाभी आभार मानना अपना परम कतव्य मानता हूं । परमपूज्य गुरुवय्यं उपाध्याय मुनि सुखसागरजी महाराज व मुनिश्री मगलसागरजी महाराजनें समय-समयपर मुभे सत्परामडं देकर जो पथ प्रदरंन किया ह तदथं उनके चरणोमे वदनापूवंक कृतज्ञता प्रकट करता हूं । जैनाधित चित्रकला पुरातन चित्र जो प्रकट किया जा रहा है वह म्‌ भो मध्यप्रदेशके पुरात््तव-साधक श्रीलोचनप्रसादजी पाडेय द्वारा प्राप्त हुआ है, प्रस्तुत-पुस्तककी प्रस्तावना काशी हिन्दू विश्वविद्यालयके हिन्दी विभागके प्रषान ओौर हिन्दी साहित्य ओर भाषाके गभीर आलोचक श्री डॉ० हजारीप्रसादजी द्विवेदीने लिखकर इसकी शोभा द्विगुणित करदीहै। श्री पाडेयजी तथा आचायं श्री द्विवेदीका मे चिरकऋणी हूं । प° रामेश्वरजी गुर }4. ऽ. (.. (जबलपुर), प्रो° जगदीश व्यास 14. 4. (जबलपुर) व सुषमा साहित्य-मदिरके सचालक श्री सौभाग्यमल्जी जैनको विस्मरण नही कर सकता जिन्होने समय-समयपर अपनी सम्मतियोसे ओर मेरे लेखन-का्यमे हर तरहसे मदद देकर मेरी वडी सहायता की हँ । प्रान्तमें मे आशा करता हुँ कि इन पगडडियोको, राजमार्मके रूपमे, कलाकार बदलकर शोधका भावी मागं प्रशस्त करेगे। मेरी मातृभाषा गुजराती होनेके कारण यदि हित्दी भाषा-विषयक दोष दिखे तो पाठक उदार चित्तसे क्षमा करे। मोढ-स्थानक ] मारवाड़ी रोड, भौपाल } -- मुनि कान्तिसागर २१-६९- १६५३ 1




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