सिंघाव्लोकन | Singhaavlokan

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Singhaavlokan by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छिन्न सूत्रों की खोज | श्प् उस के दो शिष्य और मित्र भी साथ रहते थे । इन्द्रपाल को विस्मय तो अवश्य हुआ परन्तु उसने श्रपने समीप बेंठे साथियों के सम्मुख अपना विरमय प्रकट न किया । इन्द्र पाल से एकान्त में अनुरोध किया कि शीघ्र ही दुगा भाभी या बहिन प्रेमवती को बुला लाये । दुर्गा भाभी के लिए काफी समय इधर उधर घूमे बिना पीछा करने वाली खुफिया पुलिस से पीछा छुड़ाना कठिन था | प्रेमबती लायलपुर से थ्ा्यी सुखदेव की सम्बन्धी खियों के साथ जेल जाकर उससे मिल झाई थी । उन्हों ने बताया कि सुखदेव से कुछ पता ले लेना सम्भव नहीं क्योंकि बात करते समय जेल के अधिक।री समीप बेठे रहते हैं । मैंने कहा स्वयं जेल जाकर सुखदेव से मिलेगा । मेरी बात से उन्हें अश्चय हुआ परन्तु मेरे झाम्रह पर समान गईं । मैंने उन्हें झपने नाप का एक सूट जूते हैट और एक श्रदाततती वकालत नामे का प्रबन्ध साथी धन्वन्तरी या एहसान इलाही की मारफत कर लेने के लिये कहा । अगले दिन दोपहर तक ये सब चीजें - मिल गईं । में वकील. बन कर जेल में सुखदेव से मिलने जा रहा हूँ यह बात दुर्गा भाभी को भी मालूस थी । उन्होंने कभी किसी दुस्साहस से बचने की सलाह किसी को नहीं दी । वे लोगों से घिरी रहने के कारण स्वयं मिलने न झा सकीं परन्तु सलाह दी कि जेल वालों का संदेह बचाने के लिये सुशीला दीदी की सब से छोटी बहिन शकुन्तला को सुखदेव की बहिन बता कर साथ ले जाऊं । शकुन्तला उस समय लाहौर कालेज में पढ़ रहीं थीं । एक-डेढ़ बरस से भाभी के यहाँ ही थीं । उनके घर को बार-बार तल्ाशियों के कारण वह ज़ब्त साहित्य छिपाने श्र पुलिस का सामना करने में खूब चतुर हो चुको थीं । स्वभाव से प्रायः चुपचाप भाभी के मकान में इकट्ठी हुई क्रान्तिकारी बन्दियों के सम्बन्धियों की भीड़ के भोजन श्ादि का प्रबन्ध वही संभाले थीं । मेरे फरार होने आओ अवस्था सें कूठमूठ सुखदेव की बहिन बन कर मेरे साथ सुखदेव से मिलने के लिये जेल जाने में उन के लिये भी कम शंका न थी परन्तु उन दिनों हम लोगों में भय ओर सिकक किसी को छू नहीं गया था | में कालर-टाई श्औौर सूट से दुरुस्त ऐनक बदल जो नम्बर ठोक न होने के कारण मुझे बार बार उतार कर हाथ में ले लेनी पड़ती थी




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