भारत की अध्यात्ममूलक संस्कृति भाग-1 एसी 7021 | Bharat Ki Adhyatam Mulak Sanskriti Bhag-1 Ac.7021

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) भाक्रमण करती रहती है । इस आाक्रमणमें भी एक पवित्र भावना काम करती रहनी है | वह मनुष्यक ही भीतर विजेता बननेकी सामग्री प्रस्तुत करनी रहती हैं। वद्द उसे विजेता बननेका भव्र देनेके लिए रेस करती है ¦ इस विपय- चासनारूपी काल्पनिक मायाको काठ्पनिक जानखद्धसे बधने रहन्म ही जीचन हे | मनुष्य अपने ही अज्ञानसे मोदस पढ़ गया हे । ज्ञान सभीके पास है । ज्ञान सभीके भीतर हैं। ज्ञान समीका अन्तरात्मा ह| ज्ञान सभीका सार और स्वरूप है | परन्तु सबका ज्ञान सबके अज्ञानोंकी चादुरोंसे ढका शाकर अनुपयुक्त जवस्थाम जा पढ़ा हैं। यह कसी विचित्र दास्यास्पद लीला हो रही है कि सब नपनेसे भोझल हो गये ढें | सब स सारकों जाननेका तो अभिमान करते हैं परन्तु समार भरे महादुपंण अर्थात संसारदशंनके मूलं कारण अपने विषयर्म निपट धन्ये हैं सव विपमूर्छित सर्पिणीके समान अपने जज्ञानमे छिपे पट हैं सब संसारवेया बननेका घमण्ड करते हुए भी सपनेसे अपरिचित हैं | सब रेमे दटे हनेपर भी विर्मरत कण्टामूपणके समान अपने ही सुख रूपको दूसरे दृमरे नाम दे देकर संसारभरर्े ददते किर रहे हैं और उसे वहाँ न पाकर दीननाका ऋन्द्न मवा रहे हैं | अज्ञानादरणक कारण इन्हें किसीको भी वास्त- चिकना नहीं दीख रही हैं। शिक्षाकों प्रत्येक मनुष्यक इस ज्ञानाच्छादक अज्ञानको हराना है । शिक्षासे नया ज्ञान उत्पन्न नददीं करना, उसे मनुष्यक भीतर सुपुश्च भवम्थाम पडे हुए सहजज्ञानकों जगाकर, प्रस्फुटित करके, देखने, सनुभव करने, प्रयोगे कने, उसका धानन्द्‌ भोगने तथा घन्तमे अपार उर्यासके साथ उनी समा जानेमे मनुष्यकी सहायता करनीदहै। इस प्रकारके उदार जीवनी विधि जपने पारङोढे समश्च उपस्थित करनादही दस जाग्रत जीवना उदइय हे । साघारण मनुष्यको सं मारके विषयमे कड़ा भ्रम है| बह संसारके पदार्थकि ल्ग अरग होने अम्मे उटक्षकर पदार्थौके भरगावकं भाधारसे भपने कतस्यकी दिशा बिगाद बेटा है, । यह स््यमान सरा ससार जिसे चिचारका स्रनन्यासती मनुष्य आपात इदृष्टिसि अलग जलग पदा्थात्मक समझना है, भग जटग पदार्धात्मक नहीं हे। यह सका सब मिरूकर




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