गीतापरिशीलन | Geetaparisheelan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ प्रकाशित करनेवाले उनके उदात्त साहसने मुझे उनका गुणमुग्ध बनाया है। श्वर करे भारते किचारस्वातंञ्यकी सेवा करनेवाली एेसी आत्मायं ओर ऐसी संस्थाय आर्ये ओर फे फर । इस ग्रन्थके लेखन तथा मद्रणफे समय सशोधनमे श्री भाई रामरक्खाजीने जो निष्कारण गंभीर सहयोग दिया हे वह इस ग्रंथका परम सोभाग्य हे । इस पुस्तकके मुद्रक श्री. विहर हरि र्वे महोदयने प्रत्येक फ़ार्मके प्रफ पांच पांचवार :दिखाये हैं। उन्होंने इसे अत्यन्त शुद्ध और सुन्द्र छापनेमें बड़े पेर्यसे काम लिया है। एक एक फार्म तयार करनेमें लगभग ढाई ढाई मास लगा है । इतनी सावधानीके होनेपर भी कुछ थोदीसी अशुद्धि रह गयी हैँ । उनके लिय पुस्तकके अन्तमें शुद्धिपत्र लगा दिया है । छपते समय मात्रा लुप्त होनेकी अशुद्धियोंकों पाठक स्वयं सुधार लें। इस सुन्द्र मुद्रणके लिये मुद्रक महोदय भी धन्यवादके पात्र हैं। बुद्धिसेवाश्रमके बालकोंकी पढाश्के लिये ब्रह्मवि ग्रन्थावलि नामसे सर्वथा नवीन शैलीसे पाठ्य पुस्तकॉकी रचना की गयी है । उसमे: जाग्रतजीवन, ईश्वर भक्ति, गीतापरिशीलन, आर्यसंस्कृतिका विचारस्रोत, जीवनसूत्र, ग्रामसुधार, समाजवाद्‌, नैष्ठिक ब्रह्मचर्य, सत्य अहिसाके द्वारा भारतीय स्वतंत्रता, भगव- द्वीताके जन्मदाता सिद्धान्त, शिक्षकॉका मार्गदर्शक, बालजागरण, बाल- प्रश्नोत्तरी, नारद भक्तिसूत्र भाष्य आदि ग्रन्थ हैं। यह ग्रन्थ उस ग्रन्थावालिका प्रथम ग्रन्थ है । यह सब साहित्य अभीतक अमुद्रित है। केवल यह गीता- परिशीलनभाष्य तथा इसके साथ नारदभक्ति सूत्रोंका भाष्य तत्त्वज्ञानमान्द्रके प्रबन्धसे मुद्रित होनेका अवसर पा रहे हैं । स्रयपि यह सब साहित्य अपने आश्रम बालकोंके लिये रचा गया है, परन्तु समाजकी आंखें खोलनेवाला यह साहित्य समस्त देशके लिये उपयोगी हो सकता है यह मानकर शेष सब साहित्य भी योग्य प्रकाशकॉको दिया जानेके लिये प्रस्तुत है । यदि कोई महानुभाव इन पुस्तकोंका मुद्रण या इस गीताभाष्यका भाषान्तर करना चाहें तो वे निम्न पतेपर पत्रव्यवहार करें। फाल्गुन, पूर्णिमा १९९५ विक्रमी निवेदक बुद्धिसेवाश्रम, रामावतार, ९९ डा. रतनगढ़, जि. बिजनोर, यू.पी, संचालक, बुद्धिसेवाश्रम,




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