कवि | Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विस्मय प्रकट करते हुए वे बोले--'श्राप, ाप क्या कहते हैं, झपने मिंताई
चरण में इतना गुण है । वाह, वाह रे निताई ! जुट जाश्रो बहा-
दुर, देर न करो, दरबार शुरू हो । श्रादत के भ्रनुसार उन्होंने कर्लाई में
बंधी घड़ी देखने को चेष्टा की त्यों ही कटपट एक झ्रादमी से सलाई
जला कर पूछा--'देखिये तो कितना बजा हू ?'
वे सज्जन झु भला कर बोले--'ओह, इसकी जरूरत नहीं है । घड़ी
में रेडियम है, अन्थकार में भी दीख बड़ती है ।'
भूतनाथ रेडियम का कर्ज नहीं खाये बैठा है, बहू विद्रूप कर निताई
से बोला--'बढ़ जा श्रागे, बिल्ली के भाग से छींका टुटी । झन्कों में
काना राजा ही सही !'
निताई के दिल पर चोट लगी पर उसने कुं कहा नही--उधर
प्रव तक दरबारमें ढोल पर तार जमाया जा रहा या~-ताक धिनाधिन
तडातड़, चिन्न चिन्ना धिस्न !
निताई जुट गया ।
मजे श्नौर सपे उस्ताद से निताई का मोर्चा होते हृए भी यह ग्रापसी
मामका थािल्कुल नया ठंग । तीव्रता रौर उष्णता काजराभौनाम
नहीं था । श्रोताओं में फुस-फुसाहट दो प्रकार की हो रही थी । जिनमें
श्रवल थी, वे कह रहे थे धत् मजा नहीं प्राता, चलो घर चलें । यह कोई
दरवार है । श्रौर दो-चार व्यक्ति उठकर चल भी पढ़े ।
दुसरे दल ने कहा--'महदिव का शागिद भी बड़ा मजेदार कर्नि हैं,
माँ कसम यार, खुब जबाव दे रहा है--बड़े ढंग से ।'
निताई की प्रक्षा हो रही थी-निताई का गला वहुत अच्छा है।
उस पर बहू नमक मिर्च भी खुब लगा रहा है । बहु जी-जानसे वेष्टा
कर रहा है--दो-चार कड़ी गाने कौ ।
बावुम्नों ने उसे उत्साहित किया--'वाह, कमाल है, कमाल ।'
निताई के परिवार के नोग तथा दोस्तों ने कहा--'अच्छा, खुब !'
एक कोने में श्रौरतों का जमघट ा--उनके भ्राइचय की खा न
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