कवि | Kavi

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Kavi by ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विस्मय प्रकट करते हुए वे बोले--'श्राप, ाप क्या कहते हैं, झपने मिंताई चरण में इतना गुण है । वाह, वाह रे निताई ! जुट जाश्रो बहा- दुर, देर न करो, दरबार शुरू हो । श्रादत के भ्रनुसार उन्होंने कर्लाई में बंधी घड़ी देखने को चेष्टा की त्यों ही कटपट एक झ्रादमी से सलाई जला कर पूछा--'देखिये तो कितना बजा हू ?' वे सज्जन झु भला कर बोले--'ओह, इसकी जरूरत नहीं है । घड़ी में रेडियम है, अन्थकार में भी दीख बड़ती है ।' भूतनाथ रेडियम का कर्ज नहीं खाये बैठा है, बहू विद्रूप कर निताई से बोला--'बढ़ जा श्रागे, बिल्ली के भाग से छींका टुटी । झन्कों में काना राजा ही सही !' निताई के दिल पर चोट लगी पर उसने कुं कहा नही--उधर प्रव तक दरबारमें ढोल पर तार जमाया जा रहा या~-ताक धिनाधिन तडातड़, चिन्न चिन्ना धिस्न ! निताई जुट गया । मजे श्नौर सपे उस्ताद से निताई का मोर्चा होते हृए भी यह ग्रापसी मामका थािल्कुल नया ठंग । तीव्रता रौर उष्णता काजराभौनाम नहीं था । श्रोताओं में फुस-फुसाहट दो प्रकार की हो रही थी । जिनमें श्रवल थी, वे कह रहे थे धत्‌ मजा नहीं प्राता, चलो घर चलें । यह कोई दरवार है । श्रौर दो-चार व्यक्ति उठकर चल भी पढ़े । दुसरे दल ने कहा--'महदिव का शागिद भी बड़ा मजेदार कर्नि हैं, माँ कसम यार, खुब जबाव दे रहा है--बड़े ढंग से ।' निताई की प्रक्षा हो रही थी-निताई का गला वहुत अच्छा है। उस पर बहू नमक मिर्च भी खुब लगा रहा है । बहु जी-जानसे वेष्टा कर रहा है--दो-चार कड़ी गाने कौ । बावुम्नों ने उसे उत्साहित किया--'वाह, कमाल है, कमाल ।' निताई के परिवार के नोग तथा दोस्तों ने कहा--'अच्छा, खुब !' एक कोने में श्रौरतों का जमघट ा--उनके भ्राइचय की खा न १३ #




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