निबंध रत्नावली भाग-1 | Nibandh Ratnavali Bhag-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) वहाँ इन्हें ७००) रु० मासिक वेतन मिलता था जो सबका सब साघु-संतों की सेवा श्र ्यातिथ्य में तथा अनेक लोगों की सहायता में लग जाता था | घर में इनकी स्त्री ही सब काम अपने हाथों से करती थीं। सरदार साहब श्रपने विषय के पूणं पंडित थे, पर इनके श्रधिकारी साहब से इनकी नहीं पटती थी अतएव इन्दोन वहां से इस्तीफा दे दिया श्मौर ग्वालियर जाकर कषि-काय करन लग । जब ये देहरादून में नॉकर थे तब एक ऐसी घटना हुइ जिससे इनके जीवन में विशेष परिवतन हुआ । इस घटना का वणन पडत पद्मसिह शम्मा न इस प्रकार किया है-- “उन दिनों प्रो० पृणसिंह पर रामतीथ के वेदांत की मस्ती का बड़ा गहरा रंग चढ़ा हुआ था । उस रंग में व्रे शराबोग् थे । उनके आचार-विचार और व्यवहार में बद्दी रंग कलकता था । वे उस समय स्वामी रामतीथ के सच्चे प्रतिनिधि प्रतीत हात थ। खेद है, आग चलकर घटनाचक्र में पड़कर वह रंग एक दूसरे रंग में बदल गया । देहलो पड़यंत्र के उस मुकदमे में, जिसमें मास्टर '्अमीरचंद को फॉँसी की सजा हुई, सबूत या सफाई में प्रो वृशेसिह की तलब्री हुई । मास्टर शमीरचंद स्वामी रामतीथं के अनुयायी भक्त थे। उन्होंन स्वामी रामतीथं की कुछ पुस्तकं भी प्रकाशित की थीं । इस दृष्टि से मास्टर साहब प्रा० पृणसिह्‌ के गुरुभाई्‌ ये । देहली में जाकर कभी कभी वे उनके पास ठहरते भी थे । उस मुकदमे में प्रो» साहब




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