समीक्षा और आदर्श | Sameeksha Aur Adarsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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यह तो पहली वस्तु है जो हमें कला के सम्बन्ध में देखनी पड़ती है । कला
श्रौर समाज की उलकनें समाज के विकास के साथ बढ़ती जाती हैं । * यद्यपि
सबका मूल उत्पादन की पद्धति है” * “परन्तु कला कैवल भौतिक सत्ता ही में
समाप्त नहीं हो जाती, वह एक प्रकार का श्रादर्श होती है ।3 वह किसी
न किसी रूपमे जीवन की व्याख्या होती है ग्रौर इस प्रकार उसका वास्तवः
से श्रथवा “यथार्थ” से परोक्ष संबंदध तो होता ही है । श्रादर्श श्रपने श्राप जन्म
नहीं लेते । वे भौतिक श्रौर सामाजिक परिस्थितियों के प्रतिविम्ब होते ई | ४
यह प्रतिबिंब सबके ऊपर समान नहीं पड़ते । जिस पर पढ़ते हैं, श्रौर जो
उन्हें इस प्रकार श्रमिव्यक्त करता है कि सब उन बिंबों को समान रूप से
ग्रहण करते हैं, वही कलाकार हुमा करता है ¦ वह अपनी सीमाश्रों सें रह कर
अपने समाज में होते हुए उस श्रहश्य मात्रात्सक परिकत्तनों से होने वाले
श्रप्रत्यन्न परिणामों को देखने की सामर्थ्य रखता है, क्योंकि व्यक्ति श्रौर व्यक्ति
के भौतिक संबंध मात्र से उसका संबंध नहीं रहता ; वद्द व्यक्ति के सर्वाज्ञीण
जीवन को देखता है ।
सौंदय्यंगत वस्तु श्रनेक प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति करती है । रूप की
श्रमिलाघा , मनोरंजन, सजा, श्रपने श्रादर्श को सुदढ़ करने की इच्छा इत्यादि
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