गीता - बोध | Geeta - Bodh

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Geeta - Bodh by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बा १३ अभ्यस्त थी, आगाखा महलका वातावरण उसके बिलकुल विपरीत था । केदार तारोकं घेरो ओर सतरियोने नो उनको मानसिक यत्रणाको चरम सीमा- तक पहुंचा दिया । वह सेवाग्रामकी भोपडियोमे वापस जानेंके लिए सदा तरसती रही । में समभता ह कि जनताको यह्‌ रहस्य बतानेमे मे अपनी प्यारी माकी स्मृतिको किसी प्रकारकी ठेस नहीं पहुंचा रहा ह । अनिरिचत कालतक नजरबद रहनेको सभावना उनकी आत्माको ओर भी बोल बनाए रही ओर इस ससारका कोड भी मानवी सुख उनके चित्त ओर आत्मको जाति नही दे सका। अपनी ही तरह नजरबद दूसरे हजारो लोगोका ध्यान करकं, जिनमेंसे कुछको वह अच्छी तरह जानती थी, वह और भी दुखी रहती थी और पिछले डेढ़ सालसे तो वह यही मूक प्राथना करती रही थी कि ये सब छोड दिए जाय, चाहे उनके बदले उन्हें और बापू- को सदाके लिए ही क्यों न जेलमे डालें रखा जाय 1 कितु क्या बीमारीकी उस अतिम वचिताजनक अवस्थामे रिहादंसे उन्हें कोई लाभ होता ? होता तो, कितु तब, जब उन्हं उस नजरबद कंम्पमे फिरसे




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