जातक भाग - 6 | Jatak Bhag - 6

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Jatak Bhag - 6  by भदन्त आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Aanand Kausalyaayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ [ ५३०८ शेप वच्चो ने लूटमार शुरू कर दी 1 बोधिसत्व ने देखा तक नहीं । इस प्रकार खिलोनों से भी वषं मर परीक्षा ली गई । तव सोचा गथा कि चार वपं के वच्चो को भोजन प्रिय होता है, उससे परीक्षा लेंगे । नाना प्रकार के भोजन लाये गये । शेप वच्चे कौर-कौर करके खाने लगे । किन्तु बोधिसत्व ने अपने आपको सम्बोणन कर, हे तेमिय ' ऐसे जन्मों की गिनती नही है, जब तुझे ये सब भोजन मिले है' कहा और नरक के डर के मारे उघर नही देखा । तब उसको मा ने स्नेह के वशीभूत हौ अपने हाथ से खिलाया । तव यह सोचा गया कि पांच वपं के वच्चे अग से डरते हे । इम इस तरह इसकी परीक्षा लेगे ।” उन्होंने अनेक दवा रोवाला एक बडा घर बनाया । उसे ताड-पत्रों से ढका । फिर उसे सभी बच्चो के बीच उस घर मे विठाकर आग लगा दी गई । सभी वच्चे चिल्लाते हुए भाग खडे हुए । बोघसत्व यह समझ कि नरक की अगं मे पकने से यही अच्छा है ध्यानावस्थित की तरह बैठा रहा । आग पास आने लगी तो उसे उठाकर ले गथे । तब यह सोच कि छ वर्ष की आयु के बच्चे मस्त हाथी से डरते है, हाथी को अच्छी तरह सिखा, बोधिसत्व को शेष वच्चो के बीच मे बिठा हाथी को छोडा । वह्‌ कौच-नाद करता हुम। सूड से भूमि को मदिति करता हुआ, डराता हुआ आया । शेष बच्चे मृत्यु-मय के मारे इघर-उधघर भागे । बोधिसत्व नरक के भय के मारे वही बैठा रहा । सुदिक्षित हाथी ने उसे लेकर इधर-उधर किया ओर बिना कष्ट दिये ही चला गया । सात वषं की जायु होने पर उसे बच्चो के बीच विठा एसे सापो को छोडा जिनके दात निकाल दिये गथेथे गौर मुह बाध दिथे ग॑थे थे । वाकी सभी बन्ने चिल्लाकर भाग खडें हुए । बोधिसत्व नरकभय का ष्यानकर उसकी अपेक्षा नाच को प्राप्त होने को ही श्रेष्ठतर मान निवल ही बैठा रहा । साप उसके सारे शरीर से लिपट गथे भोर सिरे पर फण कर लिया । तब भी वह्‌ निश्चल ही वैठा रहा ! इस प्रकार बीच-बीच में परीक्षा लेने से भी कुछ पता न लगा । तब यह सोच कि बच्चो को तमाशा देखना अच्छा लगता हैं, उसे राजागन मे पाच सं वच्चो के वीच विठाया ओर वही नृत्य कराया । चेष बच्चे तमाशा देख साघु कह जोर-नोर से हसने लगे । बोधिसत्व हस वात को याद करके कि नरकमें वेदा होने पर कु भी हसना तया प्रसन्न होना नदी है, नरक-भय का ध्यान कर




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