बिखरे तिनके | Bikhare Tinke
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विखरे तिनके
गुरसरन बाबू कुर्सी से उठे, “अच्छा, मिश्रूजी
अरे वाह्, ईस प्रकार कंसे ? बंधुओ, आज हमारे बाबू गुरसरन लाल
जी श्रीवास्तव हमारे कार्यालय से विदा ले रहे ह, उनके लिए अपशब्द
बोलना उचित नहीं है । हमे कम से कम अपने कार्यालय कौ परम्परा रखते
हुए एक फेयरवेल पार्टी देनी चाहिए । लाइए, एक-एक रुपया निकालिए
फटाफट ।”'
“नहीं पंडित जी, आपने अपने श्रीमुख से ये जो शब्द कह दिए यही
फेयरवेल बहुत है । अब आज्ञा दीजिए ।” चलने के लिए खड़े होकर एक
बार नौबतराय की ओर मुड़े, मुस्कराकर कहा, “आपसे भी एच० ओ०
ने कहा होगा । मुझे भी आदेश दिया है कि नौबतरायजी को चार्ज दे दो ।
पांच बजे तक जब चाहिए चाजे ले लीजिए ।”
नौबतराय भी अब नमें पड़ चुके थे, कहा, “चाजें में लेना ही क्या है ।
टाइप राइटर रहेगा ही । स्टेशनरी हां फाइल *
“मैंने आज ही सब साइन कराके रख ली हैं, एक भी पेंडिंग में नहीं
रखी । आप कल से कल का काम ही शुरू करेंगे ।” गुरसरन बाबू एक बार
मानसर महोदधि मिश्र जी को दूसरी बार सबको एक घुमौवा हाथ जोड़
करके अपने कमरे में चले गए । उनके जाने के बाद इस्टेब्लिशमेंट बाबू दबी
ज़बान में बोले, “हज़ार हरामियों के सांचे जोड़कर ब्रह्मा जी ने इसको
ढाला था । इनकी थाह न धरती के भीतर लगती है और न आकाश में ।”
मिश्र जी बोले, “अरे कुछ भी हो यार, आफिस का ट्रेडीशन मत
बिगाड़ो, विदाई समारोह होना ही चाहिए। लाभ, सब जने एक-एक
रुपया निकालो, शर्माजी, हां, यहू बात है । धन्यवाद, बाबू नौबतराय । अरे
डाक्टर कुलश्रेष्ठ, निकलो भाई ।
“एक रुपया बहुत होता है, मिश्रा जी”--
“मिश्र कहिए, मैं स्त्री थोड़े ही हूं जो मिश्रा कहते हैं ।”
“अरे खैर, मिश्र ही सही ? अमा रुपये में पूरे सौ नये पैसे होते हैं
महाराज ।”'
स्टेतो बाबू डाक्टर कुलश्रेष्ठ हंस पड़े, बोले, “आपकी बात पर एक
पुराना कवित्त याद आ गया। किसी उन्नीसवीं शताब्दी के कवि ने आप ही
की तरह रुपये का बडप्पन बखाना था 1
“अरे सुनाओ यार, कविताओं और भविष्यवाणियों के तो तुम बादशाह
हो ।” एस ० डी० शर्मा की बात पर और भी एक-दो बातें उठीं । डाक्टर
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