बिखरे तिनके | Bikhare Tinke

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Bikhare Tinke by अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विखरे तिनके गुरसरन बाबू कुर्सी से उठे, “अच्छा, मिश्रूजी अरे वाह्‌, ईस प्रकार कंसे ? बंधुओ, आज हमारे बाबू गुरसरन लाल जी श्रीवास्तव हमारे कार्यालय से विदा ले रहे ह, उनके लिए अपशब्द बोलना उचित नहीं है । हमे कम से कम अपने कार्यालय कौ परम्परा रखते हुए एक फेयरवेल पार्टी देनी चाहिए । लाइए, एक-एक रुपया निकालिए फटाफट ।”' “नहीं पंडित जी, आपने अपने श्रीमुख से ये जो शब्द कह दिए यही फेयरवेल बहुत है । अब आज्ञा दीजिए ।” चलने के लिए खड़े होकर एक बार नौबतराय की ओर मुड़े, मुस्कराकर कहा, “आपसे भी एच० ओ० ने कहा होगा । मुझे भी आदेश दिया है कि नौबतरायजी को चार्ज दे दो । पांच बजे तक जब चाहिए चाजे ले लीजिए ।” नौबतराय भी अब नमें पड़ चुके थे, कहा, “चाजें में लेना ही क्या है । टाइप राइटर रहेगा ही । स्टेशनरी हां फाइल * “मैंने आज ही सब साइन कराके रख ली हैं, एक भी पेंडिंग में नहीं रखी । आप कल से कल का काम ही शुरू करेंगे ।” गुरसरन बाबू एक बार मानसर महोदधि मिश्र जी को दूसरी बार सबको एक घुमौवा हाथ जोड़ करके अपने कमरे में चले गए । उनके जाने के बाद इस्टेब्लिशमेंट बाबू दबी ज़बान में बोले, “हज़ार हरामियों के सांचे जोड़कर ब्रह्मा जी ने इसको ढाला था । इनकी थाह न धरती के भीतर लगती है और न आकाश में ।” मिश्र जी बोले, “अरे कुछ भी हो यार, आफिस का ट्रेडीशन मत बिगाड़ो, विदाई समारोह होना ही चाहिए। लाभ, सब जने एक-एक रुपया निकालो, शर्माजी, हां, यहू बात है । धन्यवाद, बाबू नौबतराय । अरे डाक्टर कुलश्रेष्ठ, निकलो भाई । “एक रुपया बहुत होता है, मिश्रा जी”-- “मिश्र कहिए, मैं स्त्री थोड़े ही हूं जो मिश्रा कहते हैं ।” “अरे खैर, मिश्र ही सही ? अमा रुपये में पूरे सौ नये पैसे होते हैं महाराज ।”' स्टेतो बाबू डाक्टर कुलश्रेष्ठ हंस पड़े, बोले, “आपकी बात पर एक पुराना कवित्त याद आ गया। किसी उन्नीसवीं शताब्दी के कवि ने आप ही की तरह रुपये का बडप्पन बखाना था 1 “अरे सुनाओ यार, कविताओं और भविष्यवाणियों के तो तुम बादशाह हो ।” एस ० डी० शर्मा की बात पर और भी एक-दो बातें उठीं । डाक्टर 13




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