कन्या सुबोधिनी | Kanya Subodhini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
103
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बदरी नारायण शुक्ल - Badri narayan Shukl
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ | रुन्पा सु चिंनीं
ग्र
याद् रतना । भूल न जाना । जिस काम 8
भला हो चह धर्म है । अपना महाक्रये ४ ? श.
भला करने से । जैन धर्म का निचोढ़ दूष 4
भलाई है:--
“भलाई कर चलो जग में, तुम्हारा मी भला हग ।
वही है जैन सच्चा जो, भलाई में दला दोगा ॥
“खुश रहना खुश रखना, जीना श्र जिलाना
सदा जैन के मुख प्र, वस एक यही दो गाना॥
अभ्यास
?--दूपरे लीय धमं भन कामो मरे वताते हैं?
र--भयवान् मह्यकीर मे घर्म करित काम मेँ वताया है?
रेनगरीवों की सेवा करना पाप है या घ्मं ?
इ--विद्या पढ़ना, सच चोलना क्या है /
प्र--एक वोल में धर्म का स्वरूप क्या है ?
सुपोध णठ १०
धमंस्थान में क्या नहीं करना
[जैन माता का कन्याओं को उपदेश]
स्थानक हम जनों का एक वहत दी पवित्र पर्मस्यार
है। वहाँ हम लोग सामायिक संवर आदि धर्म ध्यान
User Reviews
No Reviews | Add Yours...