जैनपाठावली भाग 2 | Jain Pathavali Bhag-2

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Jain Pathavali Bhag-2 by बदरी नारायण शुक्ल - Badri narayan Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीय भांग ७ (३) शोभ, खच्छ्च, च॒गदी, निन्दा, क्रोध, जमिमान, हिसा श्ट, चोरो आदि दुर्गणों को छोडना , छोडना रूप ध्म हे। जिन दृद शावकों और सोटद सतियो के नाम तमने यद्‌ किये हैं, उन्होंने इस धर्म को जाना था यीर जान कर पाला धा। धर्मं का आचरण करने से दमारा यह भच भी सुधरता है और परमव भी-सुघरता दें। मत्यु के वाद अच्छी गति मिलती हूं । पाठ तीसरा गुर की आवश्यकता देव तटे गुर भौ पडे , किसको प्रथम प्रणाम ? देव वतावनहार गुरु + उनको प्रथम प्रणाम । स्ना न जानने चाद्धा मुमाग्िर अपने साध यस्ता जानने याले को साथ ले ठेता है । एम सच मीध के मुसाफिर हैं । इस- लिये मदा फ नर्म चतलाने याले मार्गदर्दाफ गर थी हमे आव- दया हिं । जो अपनी इच्छा के थनसार चन्तीाय करना है का स्पच्छंदी बदाराना दं। उसे 'निमस' या 'निमोडा' मी पहने है । पेता घादमी पग-पग पर ठफर स्वाला हि । इसलिये संस पर्प स ननिगरे मट्ृग्ग्ह्नेफा अय रनद| जो सदायारी निन्दभि नीर परमार्था नाई वही मदन कलास, हैं। सदन गुर ही भपना तीस् पयाया भनया सर सकते द्व 1 पिन कला मी इन




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