प्रायश्चित समुच्चय चूलिका सहित | Prayashchitta-Samuchchaya Chulika Sahit

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पन्नालाल सोनी -Pannalal Soni

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श्रीमदाचार्य गुरुदास - Shrimadaacharya Gurudas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_मतिशेबाबिकार। भ्र परति्षगधिकार। १३ उदे श्रातुसार पहिले प्रतिसेवाका कथन करते हैं,-- निंमित्तादनिमित्ताच प्रतिसेवा दविधा मता । कारणात्‌ पोडयोदिष्टा अष्टभंगास्तथेतरे ॥१७॥ भर्थ--निपित्तमे ओर श्रनिपित्ततेः भरतिसेषादो तरहकी यानी ग ३1 उनमें भो कारणसे सोलह तरहको कही शई ६ै। इसी तरह श्रकारणपे ्राठ भ ग होते ह । भावार्थ--उपसर्ग ग्यापि जदि निभिरतोँको पाकर दो्पोका सेवन करना शरीर , इस निपरिचोंकि विना दोषोंका सेवन करना इस तरह प्रतिसेवाके. ' दो भेद हें । सनमें भी भ्येकके ्र्थात्‌ निमित्त प्रतिसेवाकरे सोलह भोर अनिपिद मतिसेवाके भाठ मेद होते हैं । सारांश--कारणकृत प्रतिसेवाके सोलह भंग और अकारखे- कृत अहिसेवाके भाव मंग होते हँ ॥ ९७॥ सहेतुकः सकऊत्कारी सायुवीची प्रयतवान्‌ । तद्विपक्षादिकाः सति षोडसाऽन्योऽन्यताडिताः।४ श्र्ध-परेतुक--उयसर्गादि निपिर्तोको पाकर दोषोंको सेवन करने वाला १ सझत्कारी-'जिसका एक वार दोष सेवन करनेका स्त्रभाव है। सानुवीची--झनुवीची नाप अनुकूलता का है नो अरनुकूलताकर सहित है वह सानुनीची है अर्थात बिचारपूर्कक श्रागमालुसार बोलने वाला ३ और प्रयलनवान:- ११ चिः ्यपि पाठः




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