समयसार प्रवचन [भाग १] | Samayasar Pravachan [Volume 1]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १७१] समयसारजीकी प्रत्येक गाथाको पूर्णतया शोधकर इन संक्षिप्त सुत्रोंके विराट श्रथको प्रवचनरूपसे प्रगट किया है। सभीने जिनका भ्रनुभव किया हो ऐसे घरेलू प्रसंगोंके झनेक उदाहरणों द्वारा, भ्रतिशय ्रभावक तथापि सुगम ऐसे श्रनेक न्यायों द्वारा और श्रनेक यथोचित हष्टान्तों द्वारा कुन्दकुन्द भगवानके परमभक्त श्री कानजीस्वामीने समयसारजीके अत्यन्त _ भ्रथ-गम्भीर सूक्ष्म सिद्धान्तोंको श्रतिरय स्पष्ट श्नौर सरल बनाया है। जीवके कंसे भाव रहें तब जीव-पुद्गलका स्वतन्त्र परिणमन, तथा कंसे भाव रहै तन नवतत्वोका भूतार्थं स्वरूप समभे श्राया कहलाता है । कैसे-कंसे भाव रह तब निरावलम्बी पुरुषा्थका भ्रादर, सम्यग्दशंन, चारित्र, तप, वीर्यादिककी प्राप्ति हुई कहलाती है- भ्रादि विषयोका मनरुष्यके जीवनम श्राने वाले सैकड़ों प्रसंगोंके प्रमाण देकर ऐसा स्पष्टीकरण किया है कि मुमुश्रुझ्नोंको उन-उन विषयों - का स्पष्ट सूक्ष्म ज्ञान होकर भ्रपु्व॑ गम्भीर भ्रथे दृष्टिगोचर हो श्रौर वे वन्धमा्मे _ मोक्ष मार्गकी कल्पनाकों छोड़कर यथार्थ मोक्षमागेको समझकर सम्यक्‌-पुरुषाथमें लीन होजाय। इसप्रकार श्री समयसारजीके मोक्षदायक भावोंको श्रतिशय मधुर, नित्य-नवीन, वैविध्यपुर्ण शैली द्वारा प्रभावक भाषामे श्रत्यन्त स्पष्टसे समभाकर जगतका श्रपार उपकार किया है। समयसारमें भरे हुए श्रनमोल तत्व~रत्नोका मूल्य ज्ञानिम्रोके हृदयमें छुपा रहा था उसे उन्होने जगतको बतलाया है । किसी परम मंगलयोगमें दिन्यध्वनिके नवनीतस्वरूप श्री समयसार परमागमकी रचना हुई । इस रचानाके पश्चात्‌ एकहजार वषे- मे जगतके महाभाग्योदयसे श्री समयसारजीके महन तत्वोको विकसित करने वाली भगवती श्रात्मख्यातिकी रचना हुई भ्रौर उनके उपरन्त एकहजार वषं पश्चात्‌ जेगतमें पुनः महापुण्योदयसे मन्दवुद्धियोको भी समयसारके मोक्षदायक तत्व ग्रहण करने वाले परम कल्याणकारी समयसार-प्रवचन हुए 1 जीरवोकी बुद्धि क्रमः कद होती जर्ही है




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