शान्ति पथ प्रदर्शन | Shanti Path Pradarshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shanti Path Pradarshan  by जिनेन्द्र वर्णी - Jinendra Varni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जिनेन्द्र वर्णी - Jinendra Varni

Add Infomation AboutJinendra Varni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ८) (पञ्च चाम्र छन्द) श्रपापविद्ध जो प्रसिद्ध, शुद्ध, बुद्ध, सिद्ध है, स्वयं स्वकीयपाश से निबद्ध भी स्वतत््रहै। प्रसिद्ध शास्त्र में सुखात्मरूप, ज्ञान की प्रभा, विदेह-रूप कौन है ? ग्रहो, यही स्वयम्‌ ग्रहम्‌ *,॥ ग्ररोप-वेद-दास्व नित्य कीत्ति को वखानते न इन्द्रियादि-गम्य जी समस्त-ज्ञान-मूल है। गिरा-शरीर-वुद्धि कौ मलीनता विहीन है, समस्त-दास्त्र-सार-भूत है यही स्वयम्‌ ग्रहम्‌! प्पञ्च-हेतु भी यही, प्रपञ्च-सेतु भी यही, चिमोक्ष-देव-मत्दिरोच्च-भव्य-केतु* भी यही । यही महान से महान, सुक्ष्म से८तिसूकष्म है कवीद्ध, प्राज्ञ, स्वभू, विधूम-ज्थोतिः है यही । यथा स्वकीय-पुत्र का विशाल भाल चूमती, न जन्मदाः स्व-दट्‌ का, न अरन्य वस्तु जानती तथा प्रमोद के पयोधि की तरड़ में रंगा-- हुम्रा श्रु न वाह्यकोनभ्रन्त को विलोकता निजात्म-जन्म-हेतु, ये समस्त लोक्र की प्रभा, घन-प्रकाश-रूप, चित्स्वरूप, सूप के तता | क्रिया-कलाप-साक्षि-मूत, विद्विलास-रूपिणी, प्रमोद की परा स्थली, ग्रहो, यही स्वयम्‌ श्रहुम्‌' ॥। न वेद भी शभ्रभेच भेद जानता परेश का, कभी यहाँ, कभी वहाँ, कभी कहीं, कभी कहीं - बना स्वयं विश्ञाल एक जाल खेल खेलता, परन्तु जोकि वस्तुन. विमुक्त है, स्वतन्त्र है ॥ इतिशम्‌ बयानन्द भागव १. पाप रहित २. “मै, ३. ध्वजा, ४. मनीपि, ५. धुएं से रहित अ्रालोके, ६. माता, ७. परमात्मा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now