रवीन्द्र गीत एवं स्वरवितान | Rabindra Git Ebong Swarabitan
श्रेणी : संगीत / Music
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नवीन सस्करण के लिये मेरा निवेदन
लघु सगीत या आधुनिक संगीत के क्षेत्र मे नए युग का श्रीगणेश करने मे
महासगीतज्ञ कविगुरु रवीन्द्रनाथ का नाम सर्वोपरी है । केवल बगाल ही नहीं, सारे
भारत मे उनको चैली ने लघु संगीत के रूपमे पहल किया ओर उनकी मृत्यु के बासठ
वर्ष बाढ भी वह अलघ्य बना हु ह । उनको हस रचना-विधा मे कौन -सी एसी
अमोघ शक्ति रही होगी जिसके बलबूते पर उन्होंने ऐसा संगीत रचा] आज भी ढेशकाल,
जाति या स्थान-काल निर्विशेष के लिए उनका यह संगीत समान रूप से
प्रयोगधर्मिता की रक्षा करता आ रहा है । अपने सुर और शब्दों में सामंजस्य रखते
हुए उनके संगीत की सर्वभरौम सवेढनाजन्य अभिव्यक्ति के कारण ही यह प्रतिष्ठा
है।
हिन्दुस्तानी संगीत की सार्वश्रौमिकता को कविगुरु रवीन्द्रनाथ ने जड़ से पकड़ा
था । रवीन्द्र संगीत को नयी धारा का जन्म ढेने से पहले मूल तत्वों को समझने के
लिए उन्होंने हिन्ढुस्तानी संगीत को ही नींव बनाया । मध्ययुगीन भक्ति काव्य,
अष्टछाप कवियों के अष्टप्रहर का रागाश्रित हिन्दी भजन और कीर्तन को भ्रलीभांति
हृदयंगम किया । इस विषय में उन्होंने कहा, 'मैंने तो अपने संगीत में एक ढशमांश
हिन्दुस्तानी संगीत से उधार लिया है ।' उन्होंने २१५ से ऊपर ऐसे संगीत की रचना
की जो कदही- कहीं प्रयोजन के अनुसार भाषांतर है, अन्यथा कुछ गीतों के शब्द-
सुर ढोनों में एक से ही रखे गये हैं ।
कविगुरु की एक अप्रकाशित नोटबुक मिली थी । जिसे उन्होने खेरोर खाता
(यानी खैराती खाता) नाम दिया था । यह समीरचंद्र मजूमदढार के पास मिली |
समीरचंढद्र के पिता श्रीशचंद़ कविगुरु के मित्र थे । खाते पर १८८९ की तारीख पडी है ।
कशी बंगाब्द १२९२ मरे कविगुरु ने एक सौ ढस पढ भक्तियुगीन वैष्णव कवियों कै
पदावली के अनुकरण पर रचना की थी । उसे पढ रत्नावली नाम दिया था । इस
नोटबुक की सबसे बड़ी विशेषता है कि कवि ने स्वयं इन गीतों के बारे में उस खाते
में उल्लेख किया है |
काठियावाड़ के कांग्रेस अधिवेशन में कविगुरु ने हिन्दी में भराघण दिया । साबरमती
के आश्रम में हिन्दी भजन गाए 1 रात वहीं गांधी जी के साथ बिताया । हिन्दी भाषा
को सम्मान देते हुए उन्होंने अपनी सम्मति जताई-'कभी न कभी देश को स्वराज
मिलने के पश्चात हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा होगी । कारण यही सर्वाधिक
स्वरदितान/9
User Reviews
No Reviews | Add Yours...