कला विनोद | Kala Vinod
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चाहिए । साली एक ढंग वा चलेगा मही । भूप को नये ढंग से पेश करना है
तो भाषा ही बदलेंगी, भूप नही बदलेगा । वह घटना नहीं वदलेंगी । रागो को
रूप वहा है, जैसा आपका रूप है वेसा रागा वा । वह तो दिखना चाहिए
पहले । राग क्पडे-वपडे नहीं पहनते । वे सब नगे हैं । बाद में, जव रचना हो
जाती है, जब ताल मे आते है वे अलग-अलग कपडे पहनकर आ जाते हैं ।
मगर शुद्ध रागरूप आपको मालूम नही कया ? बदिश वे याद आए बिना राग
तो आता नहीं है समीतकार को । बिना घदिद के, थिना ताल के राग को गाकर
सुनाए । खाली राग को । कोई वदिश नही, ताल नही । भाग जाएगे सव ।
श्ास्प्रीय सगीत की दुनिया प्राय लोकसगीतसे दूर था ऊपर रही
है । लेकिन आपका लोकस गीतं से उतना ही गहरा रिदता है जितना
शास्त्रीय सगीत से 1 बल्कि मालवी लोकधुनों का एक समचा फाय-
भ्रम भी आपने तथार किया है जो कि शास्त्रीय समीत के इतिहास
मे एक नयी बात है । आपके गाये कबोर, मीरा आदि के पदों में
शास्त्रीय रागो के साथ लोवसगीत का स्पश्च भी जगह-जगह मिलता
है। षया आप शास्नीय गायन मे लोकसमीत फा उपयोग रचना को
एकः पूणता देने के लिए करते है ? अगर सा है तो शास्त्रीय सगीत
मे आपको क्या कोई अघूरापन लगा ?
जो परिपूण सगीत है यानी राम सगीत, उसे हम ओर क्या परिपुण कर सकते
हैं * उसकी खोज कर सकते हैं। और वह मुझे दिखा लोक्-सगीत मे । हम
उसमे भर डाल सकते हैं । उसमे जो भराव हैं--चाहिए, बहुत चाहिए । कसी
ने क्या नही है । मैंने पहले भी कहा है, राग वनाये नही जाते, राग बनते हैं ।
बनाये जाने वाले राग अलग हैं । वे जो पुराने राग रूप हैं, वैसे रुप बनाने के
लिए आदमी का प्रयत्न--सिफ समझ हो सकती है, वे बनाये नही जा सकते
हैं । पुराने जितने राग हैं, वहुत कम ह, यानी रागो के नाम बहुत होगे, मगर
दुद्ध रूप उनका जो है, ऐसे राग बहुत बम हैं । इसलिए मुझे सगीत के तल मे
जाने की इच्छा हुई । लोक समीत मे जाने का उद्देश्य यही था । मेरी धारणा
ही है कि लोकघुनो पर ही राग-समीतका आधार है । दस-बारह जो राग हैं
उससे वने हैं ।
यह सभी कहते रहे हैं कि शास्त्रीय सगीत लोकघुनों से उपना है ।
सभवत वह् कते होता है, यह कीभिया आपने कर दिखाया है ।
कीमिया कंसा ? उसका मूल क्या है वह मुझे समझ मे आ गया । कुछ पहले
से बीज गिरे हुए थे । गुरुजी वाले । बबई मे जब मैं सीखता था तो गलती से
सगीत का एक नया सौंदय दास्त्र / €
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