मैनासुन्दरी नाटक | Mainasundari Natak

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Mainasundari Natak by राजकुमार जैन - Rajkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ककि ¦ + : दर ^ $ ९.०. ~ | नं ४ ८ सीन ४ ट ~. र ५1 जज जे जज जज जे चम्पायुर नगर का प्रदा १६ चम्पापुरी प्रजा का राज्ञा श्रीपाल ॐ वियोग में रोतै हए नजर धाना वाल तुमे फलक य्‌ कया किया हाय गजयं सितव गजब ॥ १ तूने करम यह्‌ क्या किया हाय गजब सितम गजब ॥ वनवास मेँ राजा गया हीय गजब सितम गजव ॥ २ माता को रोतती ढोड़के और राज से मु ह मोड़ के। हमरे लिए यह दुःख सहा हाय गजब सितम गजब ॥ ३ राजा हमारा प्रान था सारी प्रजा की शान था। सूना नगर यह्‌ हो गया हाय गजव सितम गजव । जज जज भ् भ {£ ^ ५ + सान घ > द ^ जद जे. जज जे जज जज जी राजमहल्न का परदा (१७) नोटः (१) मालवा देश में पच्लेन नगरी एक दटूठ बदा शहर धा जिस्य राजा पहुपाल राज फरहा था ॥ इस राला ऐे निपुस सुन्दरी पटरानी यी भर




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