पंछी और परदेस | Panchi Aur Pardes
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
231
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४
में लीला को लेकर श्रभी डिनर रूम में आता हूँ ।”
यह् कद्कर वलरान लीला के कमरे की श्रोर चल दिए श्रीर राकेश
पीछे लौटा 1
लीला श्रपने कमरे में साड़ी चदल एक रवेत मलमल की घोती पहन
रही 18. अत्यन्त व्यस्त थी 1 चिट्ठी द् उसने र्म चर्ख दीयी।
समय एक वार उड़ती-उड़ती निगाहों से देख लिया था 1 पथवाहिका ने
नो बजे का समय सिध्चित रखा था ।
“दया वात है लीला कहाँ जा रही हो ? तुमन मु पहले नहीं
बताया ढक तुम्ह एक सगाई में जाना है। चलो खाना खा लो मैं तुम्हारा
हो इन्तज़ार कर रहा था । यह कहते-कहते चलराज पत्नी के सम्सख
भा गए झोर साड़ी का पैकेट मे पर रखकर तनिक; टकर पुनः बोले--
“वह् साड़ी लाई हो 1 तुम नहीं जानतीं दम कोटी में रहती हो, कार पर
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चलती हो श्रौर फिर प्लाईमाज्य कार । जो हर एक को नलीव नहीं
हता । क्या तमाया देख रहा हू मे £ सहेली के
सलमल कौ थोती पहनी है। वाह ! लीला वाह ! तुम्हारे गुस्रो का
कमान नहीं । कुरर नहीं दत्तान श्रीर् सजा देने लगती हो 1”
यद फहते-कहते वलयाज मूविग चेयर पर बैठ गए । कमरा
दस्ति वा । लाला की साड़ी का पतला फर-फर उड़ रह
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1 था । वह चोली
कना चकद्र व्यस्त स्वर में सके शमी भव नहीं है । में कुछ नहीं
खाऊँगी घर में नाराज कहां * वस अभी ग्राती घण्ट-उढ़ घण्टे में ।
ठुम लोग टिनर लो । मैं ाद में खा लूंगी ।””
यह कह लीला ने प्रतीक्षा नहीं की 1 वह जाने .
सगे भायाजन कर दरवाजे की श्रोर बढ़ी 1 त भी वलराज जल्दी से दर्सी
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से उठ । इरानी कारपेट पर स्लापर सटके, वे कह रहे बे--“पुनो
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तेकिनि सीता जते यौ देवा के धोड़े पर सवार । उसने कुछ भी
नवाव नहीं दिया और पोटिको में था गई
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