जैन जगत | Jain Jagat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ | राजनै(निकः रश्ट्रसे स्त्रियोंक अधिक्रार मन्त ही समाजमें नीचे रहे हों. परन्तु जनधघर्म उस चविपसताका समर्थक नहीं था । यह चात दमनी. कै कि उसके कथा सा हित्यमें स्वाभाधिक चिडण के कारण लिपप चिश्गा हुआ हो, परन्तु घामक . क्त टप्रिसे वह समलाका ही समर्थक रहेगा | दस- लिये जा महाघन सुनियोंके लिये थे, वे ही आ- ननजगन्‌ यिंका आंच सियिभीय। दसीप्रकार जो अण्यु्त श्रावकाः लिये थे वे ही श्ाविकाओं के लिये भी थे। मुनि छोर जार्यिकाइओं की चरावरी तो निधिवाद मानी 'न्ाग्पकरती है । उसका सामाजिक नियमों . से स्वंघप नहीं होता । परन्तु श्राविका्योक चिपय मं यह नहीं कर स्त्रियों को रस्तकर भी ब्रह्मचयारपुचती कहत्टाना चाहता है भोग वेश्पासेचन कर दे; सिफ़े अरुघन अतियाग्सानना चाहता है. न कि अनालनार जबकि धाविकाक लिये चुत ही कठोर दात हैं । जनघसस इस चिपसताका समर्थन नहीं करसकता। 1 जास्पकता । श्रावक ता सकड़ों « उसकी रृप्रिमें दोनों एक समान हैं. इसलिये . दोनों अरपुघन भी एक सरीखे ू। उपासक , दशामें उ पासिका ओके चर्णनमें, सम्भव है, पसे . _ अध्ययन नए कर दिये गये या नष्ट होगये | स््रघिगा शायर हों जो भगवान महावीर के जेन- घर्मके अनुकूल किन्तु प्रचलन लोकब्यवहार के प्रतिकृष हो इसलिये उपासिकाओोंके चरिघ न रहने दिये हों । यहाँ पक प्रश्न यह होता है कि जैन झा: स्त्रों में अन्यत्र सी पुरुपोंक चरित्र एक सरीखे मिलते हैं | उदाददरगार्थ 'णायघम्प कहा' के अपग्कका अध्ययनमें दी परी ने पाच पतियों का वर ण किया, यह चात नघत स्पष्ट रूपमें और विटशुःन्य [ यष & शकर | यह प्रश्न बिलकुल निर्जीय नहीं है. परन्तु इसका समा घान भी ऐहो सकता है। मे कहचुका हू कि 'शायघम्मकहा' में क्रिपी पक तको लच्यमें लेकर एक कथा दृप्ान्तरूपमें उपस्थित की जाती है । उस कथाकें अन्य मागों से विशेष मतलव नहीं रफ्ग्वा जाना हैं, परन्तु चह कथा जिस वातका उदाहरण है उसीपर ध्यान सिथा जाता हि । अपरकंका श्रध्ययनका टस्य निदान की निन्‍्दा करना ? है झधवा चुरी वस्तुका तुमे ढंगसे दान देनेका वु फल बत लाया है । इसलिये पच पलिया चात परकर णयाह्य या लक्ष्यबा छा कहकर टाली जा सकती है, था लॉकानाग्की दुहाई देकर उड़ाई जारकती है । परन्तु अगर ' उपासक दशा ' में हो तो च्टों चह् अगं रपा यही कथा मुख्य धान चने जञायर्णी, कयोंफि यह ,यारका परिचय देनेयके लिये है सवक भीदा, प्रन्त्‌ यद्ट यात निखित है कि “उपास्क ददा' में उपासिका ओं के अध्ययनों की आवश्यकता है ज्रीर सम्भवतः पिट हम अग मं उपासिकाओंकं शध्ययन भी होगे । पीछे किसी अनिश्चित या अधसिध्यित कारणस ये ८-अतक्रदशा---इस अगमं मुक्तिगामिर्यो क दशाक्( चणनद्ै । दिगम्बर सम्प्रदायकरे अ. ' नुसार इसमें सिफ उन सुनियोंका ही वर्णन है निः संकोच मावस कही गड है । एसी टालतमं 'उ- ' पासकदरशाः प्रंभीयदि पमा चणन कदान्दित था को एसके दटानकी फया ज़रूरत थी ? जिनने दारूण उपसर्मोद्धोी सहकर मोक्ष एप गे है सुबरुपि तबकिल्सो नियाणदोसेण दूं सिआओ सतो । न सिवाय दोवतंए जहा फकिल्ठ सुकमा स्दिजा जम्मे ॥ गममणस्षमसप्ताएं भत्र मणस्थाय । पे दाण जद्द कडुय तुबदाण नागसिरि भवस्मि दोच्ए ॥ जणा० घन कद्दा १६ अध्ययन अमयदेव टीका ! ; मसारस्य पमः कृतो र ग्तेऽ-तकृतः नमि म्रा द्रव्यते दका वव्मान तीथकर तीयं एव्‌ [न से.मिल-'




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