प्रस्थान | Prasthan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)#१ प्रस्थान
परिस्थिति से घिरे रह कर भी, यदि संकरों, विपत्तियों और बाधाओं
पर प्रश्श्रिम की अचरड शक्ति से, साहस के असीम बल से, विजय
पाने का हढ़ निश्वय कर लें श्रौर उन्हें जीत लें तो उन्हें मी वही
आनन्द श्रौर वहीँ गो आप होगा जो उनको अपनी विजय और
बहादुरी से मिलता है । इसलिये उन्हें संकटरूपी हस्ती पर पिंड के
सहश्च ट पढ़ना चाहिये तथा चीर कर उसके टकड़े-टुकड़े कर देना
चाहिये। वे अपनी सिंहनगजना से स्वयं विपत्तियों को कँँपा सकते
हैं पर विपरीत वातावरणों पर शानदार विजय ग्राप्त कर सकते ह |
> >< > ><
नवेहमान ८ मेरा माड शप्र चुका, नही तो क्रोऽरी
निकल... 14: एक युवक का तिरस्कार करते हूए एक
कका श्री ने कहा और उसे निकालने के लिये पुलिस बुला
लायी । किसी मापि एक सज्जन ने उसका याड़ा चुका कर खो
की शान्त किया |
यह युवक बड़ा श्रमागा ौर रिषन था । चेचक के धब्बे से
उसका चेहरा इतना बुरा हो गया था कि लड़के उसे “लकड़ी का
चस्मच कह कर चिराया करते थे । गीत गान्गा कर निर्वाह करने
वाले मिज्नुकों के लिये यह छोटे-छोटे गीत बनाया करता था और
करठिनता से उसे दिन भर में चार पेंच मिल पाते थे। यह स्वयं
चंशी बजा-बजा कर घर-घर सीख माँगता दिरता था ! मिक्षाटन
करके ही इसने इटली चर फ्रांस की यात्रा की थी । श्रह्वाईप वषं
का यह नवयुवक लन्दन में पेसे-पेसे का मुहताज था श्रौर मिच्नुकों
# मुहल्ले मे रह्य करता था !
दरिद्रता से अत्यन्त पीड़ित होकर इसने चिकित्सा करना
च्रारम्म किया | परन्तु डाक्टर बनने पर भी निर्घनता ने इसका पिड
नहीं छोड़ा । यह चाजार से खरीदा पुराना कोट पहना करता था |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...