केशव - कौमुदी | Keshav Kaumudi
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वक्तव्य
केशव कृत काव्य श्रोर विशेष्र कर यह रामचन्द्रिका पढ़ने से पहले पाठक
का यह समम लेना चाये किं कषिता क्यादहैश्रोर महाकाव्य किसे कहते ६,
क्योकि केशव ने इन्दं दोनोँ वस्तश्रों का श्रादशं लेकर इस अन्थ की रचना की
हे ।
केशव कल्पना श्रौर माव प्रसूत विचासे को मधुर शब्दो तथा विलक्षण
युक्ति से प्रकट करने की कला ही को कविता मानते थे, श्रतः कथाप्रसंग को
ठीक रीति से चलाने की और उन्दोंने कम ध्यान दिया है, केवल कथा प्रत'ग से
सामने श्राने वाले नैसर्गिक पदार्थों वा भावों पर विलक्षण कल्पने करने ही में
श्रपनी बुद्धि श्रधिक खच की है । इस विचार से यदि केशव को कल्पना पुज
कदा जाय तों श्रचुचित न होगा।
मदाकाव्यके जो ल्तण साहित्यदपंण म लिखे हई उन्हीं को लेकर खूब ही
कल्पना के घोढे दोड़ये हैँ । मदाकाग्य के लक्षणो को जानने के लिये पाठकों
को साहित्यद्+ण॒ नामक ग्रन्थके छुटे परिच्छेर के ३१५ वैँ श्लोकसे ३२९५ वे
श्लोक तक दख कर उन्हें सम भक लेना चाहिये ।
केशबजी राम के भक्त तो श्रवश्य थे, पर तुलपीदास के विरुद्ध, उन्हें श्रपने
श्राचार्य, पाणिडत्य श्रौर राजकवित्व का श्रधिक ध्यान था । श्राच,यंत्व प्रदशन
ही के लिये उन्होंने इस ग्र थ में विश्रिघ छन्दों की इतनी भरमार की है कि लग-
भग पिंगल के सब ही प्रचलित छन्द इसमें श्रागये हैं | इनका यह भाव पहले
प्रकाश के छन्द नं० ८ से नं० १६ तक के देखने से भली भाँति पुष्ट दो जाता
है, क्योंकि ८ वाँ छन्द एक वर्खिक, £ वाँ १० वाँ द्विबर्णिक, २१ वाँ त्रिवर्णुक,
१२ वाँ चतुर्वर्णिक १३ वाँ पंचवणिंक, १४ वाँ पटवणिक, १५ वां सत.शिंक
और *६ वाँ श्रष्टवणिक है । ऐसा मालूम होता है कि कथा नहीं लिख रहे हैं,
बरन् किसी शिष्य के। पिंगल पढ़ा रहे हैं । यही दाल झलंकारों, काव्यदोषों,
काव्यगुयों, तथा व्यंग का है । इन सब चीजों की इस अन्थ में भरमार है ।
पारिडत्य की तो बात दी न पुछिये । बाण, माघ, भवभूति, कालिदास
तथा भास तक के सुंदर, प्रयोग, श्रदुुत विचार, गम्भीर श्रौर क्िष्ट श्रलंकार
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