जय वाणी | Jay Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
576
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द् भ
स्वामी ! थे पारिया, श्स्ह् तणा फाञज के,
तीन भवन् री पमो राज के
शील श्रखंडि्त पालजो ॥
नेमीश्वर के दीक्षा लेते ही राजुल फे जीवनाकाश में शोक के मेघ छा
जाति हैं । उसके मनम भगवान् नेभि के दशेन की तीव्र उत्कण्ठा जाम हो उठती
है घर वह उन तक पना उपालभ भेजने वथा उनका पत्र लाने के लिए, देखिए-
किस प्रकार छापनी सखियों को फुसलाती है--
^ तरसत अखिया हुई टरम-पणिया '
जाय सिलो -पिवसू सखिया '
यदुनाथजी रे दाय री ल्यावे कोद पतिया
सेमनायजी-री्नानाथजी ॥
जिणकृ श्रोर्ल॑मो एतो जाय कणो,
थे ठज राजुल किम भये जतिया ?
जाकर दगी जरावरो गजरो,
कालन शू चूनी मोतिया ॥
'गुरी कू भू ढड़ी, 'सोढण कू फमड़ी,
परण छर रेशमी घोतिया ।
मल श्रटारी, भए कटारी
चद् ~ किंर्ण तन् दार्मतिया ॥|**१
जब राजुल की माता उसे श्ाश्वस्त करती है -तो-वह उत्तर में जो कुछ
कहती हैं चह उप्तकी ड नेमि-निष्ठा एवं महनीय शील का द्योतक है) कवि की
वाणी में राजुल की 'उक्ति सुनिए--*
किस के शरणं जाऊ, नेम `विना किनके शरणे जाऊ ।
द्रण जग माय नहीं कोई मेरो. ताकि यज कष्टा ॥ तेम० ॥!
मात पिता सुण सती सषेल्या, लिख कर दृत पाङ ।
किए ॒गुन्दे मोय तजी पियाजी मेँ भी पदेशो पार ॥ नेम० ॥
में होपल एक राग न छोड ; छोड़ «कहो किहां जाऊ |
छात्र टुक घीरप-रथ होंको, चालो में भी थारे लार श्राङ 1 नेम० ॥””
¢? जयवारी प° स० २.२६-२२० '(दल-२ र)
` २ जयवारी प स० २२० (दाल)
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Jain Sanjeev
at 2019-09-11 08:56:38"Jay Guru Jaymal"