जय वाणी | Jay Vani

1010/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jay Vani by मधुकर मुनि -Madhukar Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मधुकर मुनि -Madhukar Muni

Add Infomation AboutMadhukar Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द्‌ भ स्वामी ! थे पारिया, श्स्ह्‌ तणा फाञज के, तीन भवन्‌ री पमो राज के शील श्रखंडि्त पालजो ॥ नेमीश्वर के दीक्षा लेते ही राजुल फे जीवनाकाश में शोक के मेघ छा जाति हैं । उसके मनम भगवान्‌ नेभि के दशेन की तीव्र उत्कण्ठा जाम हो उठती है घर वह उन तक पना उपालभ भेजने वथा उनका पत्र लाने के लिए, देखिए- किस प्रकार छापनी सखियों को फुसलाती है-- ^ तरसत अखिया हुई टरम-पणिया ' जाय सिलो -पिवसू सखिया ' यदुनाथजी रे दाय री ल्यावे कोद पतिया सेमनायजी-री्नानाथजी ॥ जिणकृ श्रोर्ल॑मो एतो जाय कणो, थे ठज राजुल किम भये जतिया ? जाकर दगी जरावरो गजरो, कालन शू चूनी मोतिया ॥ 'गुरी कू भू ढड़ी, 'सोढण कू फमड़ी, परण छर रेशमी घोतिया । मल श्रटारी, भए कटारी चद्‌ ~ किंर्ण तन्‌ दार्मतिया ॥|**१ जब राजुल की माता उसे श्ाश्वस्त करती है -तो-वह उत्तर में जो कुछ कहती हैं चह उप्तकी ड नेमि-निष्ठा एवं महनीय शील का द्योतक है) कवि की वाणी में राजुल की 'उक्ति सुनिए--* किस के शरणं जाऊ, नेम `विना किनके शरणे जाऊ । द्रण जग माय नहीं कोई मेरो. ताकि यज कष्टा ॥ तेम० ॥! मात पिता सुण सती सषेल्या, लिख कर दृत पाङ । किए ॒गुन्दे मोय तजी पियाजी मेँ भी पदेशो पार ॥ नेम० ॥ में होपल एक राग न छोड ; छोड़ «कहो किहां जाऊ | छात्र टुक घीरप-रथ होंको, चालो में भी थारे लार श्राङ 1 नेम० ॥”” ¢? जयवारी प° स० २.२६-२२० '(दल-२ र) ` २ जयवारी प स० २२० (दाल)




User Reviews

  • Jain Sanjeev

    at 2019-09-11 08:56:38
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "Jay Guru Jaymal"
    Very nice book
Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now