परम शान्ति का मार्ग | Param Shanti Ka Marg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
426
श्रेणी :
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No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्मयुक्त उन्नति ही उन्नति है ९.
परस्पर सवके साथ वहत उत्तम तथा सरल, विनम्र, स्पष्ट, न्याययुक्त
ओर सत्य व्यवहार करना चाहिये । गछा-किराना, सूत-कपड़ा,
गुड़-चीनी, लोहा-सिंमेंट आदि किसी भी वस्तुके भाव तेज या मदे
हो जनिषर भी खीकार किये हए सौदेके मालको देने और लेनेमें
न तो जरा भी आनाकानी करनी चाहिये; न वेईमानी करनी
चाहिये और न अस्वीकार ही करना चाहिये, चाहे. कितनी ही
हानिका सामना करना पड़े । किसी भी दलाल, व्यापारी या एजेंटका
कोई भूलसे दोष हो जाय तो उसे क्षमा कर देना चाहिये तथा
अपने सम्परकंभे आनेवाले सभी व्यक्तियोंको अधिक-से-अधिक लाभ
हो और उनकी सब प्रकारसे उन्नति हो, ऐसा भाव रखना चाहिये ।
ऐसे व्यापारसे इस ठोक और परलोक--दोनोमें सुगमतासे उन्नति हो
सकती है |
सामाजिक उन्नति
इसी प्रकार हरमे सामाजिक उन्नति भी करनी चाहिये | बच्चा
पैदा होनेपर पार्टी देना, कोको बुखाकर चौपड-तारा खेखना, बीडी-
सिगरेट पिलाना, विवाह-दादीमे दहेज लेना, दहेजका दिखलवा कना;
आतिरावाजी करना, चिनोरी निकाठ्ना, बुरे गीत गाना; यियेटर-
तमादे दिखाना, पार्टी देना, बहुत अधिक रोशनी करना, बडे
पण्डार बनाना, दिखावेमे व्यर्थं खच करना एवं धरके किसी बद्ध
आदमीके मर जानेपर विषिसद्गत ब्राह्मग-मोजन ओर बन्धु-बान्धवोके
अतिरिक्त प्रीतिमोज करना, पार्टी देना--आदि जो कुरीति ओर
फिजूलखर्ची हैं, इनको हटाना चाहिये | ये सब बाते सामाजिक
उन्तिंके अन्तर्गत हैं ।
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