प्रेम - सुधा भाग - ६ | Prem Sudha Part-6

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्यक्त्व संरक्तण ६ सज्जनो । यह्‌ क्रोध बडा ही भयानक शत्रु हे। क्रोघ के वरीभूत होकर वडे-बडे ज्ञानी भी ज्ञान भूल जाते हैं । कुछ ही दिनो की बात है कि श्रजमेरमें एक श्रोसवाल भाई कए मेँ कद कर मर गया । हमें ज्ञात हृभ्राथा कि वह्‌ घमं काज्ञाता भ्रौर श्राचरण करने वाला भी था। पाठशालाग्रो मे पढनें वाले कई बालक जब परीक्षा मे अनु- त्तीर्ण हो जाते हे तो श्राप श्रखबारो में पढते होगे, वे रेल के नीचे दब कर मर जते ह। मले मनुष्य की बुद्धि का इससे वढकर दिवालियापन श्रौर क्या हो सकता हं ? इस प्रकार कट कर मर जने से उसे क्या उत्तीणेता प्राप्त हो गई ? क्या प्रमाणपत्र मिल गया ? वहु अनुत्तीणेता श्रौर लज्जाके कारण इस शरीर से तो मर गया किन्तु. भ्रपघात करके उसने श्रपने जन्म-मरण की भ्यृखला श्रौर भी लम्बी कर ली 1 भाद्यो । दो पहलवान लडउतेहैतोदोनोमे से किसी एक की हारतो निर्चित हं ही । सव लोग व्यापार करते हे । उनमे से किसी को नफा श्रौर किसी को नुकसान होता है । यह हानि- लाभ श्रौर उतार-चढाव तो ससार में होता ही रहता हैँ । किन्तु इसके कारण श्रपने मृल्यवान्‌ प्राणो को श्रपघात कर क्यो खो रहे हे * जीवित रहेगा तो फिर भी विद्याभ्यास कर लेगा । कदाचित्‌ विद्याम्यास न किया तो दूसरे प्रकार से जीवन का लाभ उठा सकता है, देश, समाज और धर्म की सेवा कर सकता है ! कहावत प्रसिद्ध है -- जदा रहे तो लाखो पाये ।' प्रतएव इन श्रनमोल प्राणो को वृथा गवा देना महामूख॑ता




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