पश्चिमी दर्शन | Pashchim Darshan

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Pashchim Darshan by डॉ. दीवानचन्द -Dr. Deewanchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुकरात से पहने शुं चमत्कार हैं। अग्नि विष्व का मूल तत्व है। मूल अग्नि जपने आपको बायु मे परिवर्तित करती ह, वाय्‌ जल वनती ६, जीर जठ पृथिवी का स्प यहण करता हूं यह नीचे की ओर का मार्ग है। हम इसे विकास कह नयने है। उसके विपरीत उपर की ओर का मार्ग' &। इममे पृथिवी जल मे, जकवावुमे, वायु गन्ति में वदन्ते ह । अग्नि ही जीवन और वुद्धि हैं, यह पदार्थो मे जीवन नीर ब्रोधकाञयट्‌। फिसी पदार्थ मे अग्नि की माना जितनी अधिक होगी, उतना ही उनमे जीवन अविर होगा। जीवन की मात्रा पर ही गति का आधार है। प्रकाश की कमी जौर्‌ भारीपन पदार्थों को मृत्यु की जोर ले जाते हैं। मनुग्य की आत्मा भी अग्नि ही है, यह व्यापक मात्मा अग्िकाञन है। सुप्टि अग्नि से प्रकट होती है भर अन्त में आरिन में ही विरीन हौ जानी द) उल्यया के मत्त के अनुसार, सत्‌ एकरस ओर्‌ नित्य है, वहुत्व और परिवर्तन आभास, छायामात है। हिरैमिलटस दूसरी सीमा पर गया और उसने कहा कि सारी सत्ता प्रवाह की स्थिति में हैं। नित्यता हमारी कल्पना ही है। कोई मनुष्य एक ही नदी में दो वार कूद नहीं सकता । जय बद्ध दूसरी बार दूदने लगता है, तो पहनों नदी कहाँ है * पहला जरू कही नीचे जा पहुँचा है और नया जल ऊपर से वहाँ भा गया है और कूढनेवन्दा भी त्तो वरद गया है। ससार में स्थिरता का वही पत्ता नहीं चलता, अस्पिरता ही विद्यमान है। स्म विचरण ते प्रतीत होता है पि एक अवस्था गुजरती है लोर ट्रमरी उसका स्थान लेती है। हिरफ्लिट्स इसने थागे जाता है जौर कहता है फि प्रत्येक सवरथा में भाव जर्‌ अभाव का मेन है। यह मेद ही सत्ता का यान्तरविक रूप हे। हिरविलटस ने विरोश को सत्ता ना तत्व बताया । कवि होमर ने प्रार्दना की थी फ़ि देदनासेमे मनप्यों में संग्राम समाप्त हो जाय । ८ विर्द्ध, हिरविजटस वता है णि नचान रै न्माप्त होने पर तो सत्ता ही समाप्त हो जायगी । संग्राम से हो परार्यों की उन्पत्ति होतों है; और संग्राम से हो उनका विनाद होता हैं। जोयत लौर मूदु सदन हूँ। प्रतीत ऐसा होता है कि सनाय जनम लेता ही कौर जुद समय दाद सस्ता है। तथ्य यह है कि प्रति बह पैदा होता है जीर मन्ता)




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