इन्साफ-संग्रह | Insaaf-Sangraha

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Insaaf-Sangraha by मुंशी देवीप्रसाद मुंसिफ़ -Munshi Deviprasad Munsif

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ ( १३ ) मत मारा । जब एक घड़ी हो गई तब महाराजा ने फिर कान लगाया और का यह यों कहता है कि सब लोग देखते रहँ श्रभी एक चिडिया आवेगी भ्रीर जा चोर होगा उसके सिर पर वैठ जावेगी । चोर भी उसी जगह मैजूद था | उसने जा यह सुना ता बहुत घबराया झोर फौरन ढाल ऊँची करली जिससे वह चिड़िया उसके सिर पर बैठने न पावे । महाराज ने उसी दम उसको पकड़ बुलाया श्रौर खड़े खड़े उससे थैली मैंगवाकर उन सब लोगों के सामने मुदईं को दिता दी । इन्साफ १४ एक शली मिट्टी लेने को खान में गई थी । जब बाहर निकली ता उसके पीछे एक पुरुष भी उसी खान मे से निकला । खी का पति भी दैवयोग से वहीं पाखाने फिरने गया था । उसने यह देख लिया और खी को घर से निकाल दिया | उसने मद्दाराजा बखुतसिंदजी से पुकार की । महाराजा ने कहा, जब पति ने तुभको एक परपुरुष के साथ खान से निकलते देख लिया है तव तुभे यह सिद्ध करना चाहिए कि तुझसे और उससे कोई बुरा सम्बन्ध नहीं था । ख्री ने कहा, कोई साक्षी ता है नहीं । लोहे का गोला तपा कर मेरे हार्थो पर धरा दीजिए; परमेश्वर ने चाहा ते मेरा हाथ नहीं जलेगा । महाराज ने गोला तैयार करवाया । खी मै श्रपने सुसर का नाम लेकर कहा कि जा मने अपना धर्म बिगाड़ा हो तो मेरा हाथ जल जवे । यह कह कर उसने गोला उठा लिया । परन्तु उसका हाथ. जल गया। उसको इससे श्रयन्त श्राश्र्य्यं ्रौर दुख हुआ । सबने उस पर धिकार की बैद्धार कर दी तव तो वह ललित होकर चली गई । मगर फिर महाराज के पास श्रा कर कहने लगी कि मैं बिलकुल सच्ची हूँ । पर एक भूल मुझसे हा गई । जा अपने पति को सुसर का बेटा कह कर गोला उठाया । यदि सास का बेटा कह कर उठाती तो मेरा हाथ नहीं जलता । महाराज ने कहा, बहुत अच्छा, फिर सदी । रव जां गोला दहक कर लाल हुआ तब उसने कहा कि जो मैंने अपनी सास के बेटे के सिवा और किसी का मुँह देखा हा ता मेरा हाथ जल जवे] सो उसका हाथ विलङ्कल नदीं जला । ` वह देर तक गोले को श्रपने हाथ में रक्खे रदी । जव सवने कहा कि डाल दे ता उसने डाल दिया । उस समय गोले से जमीन जल गई । सव लोगों ने | द




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