अतीत का अनावरण | Atit Ka Anavaran 1969
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.29 MB
कुल पष्ठ :
223
श्रेणी :
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आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi
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मुनि नथमल - Muni Nathmal
मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जाति अवम्य थो | अचुर जाति को सम्यता और संस्कृति बहुत उन्नत थो । उन के पराक्रम से बंदिक आर्यों को प्रारम्भ में बहुत कप्ति उठानी पड़ी । असुर लोग आहत धर्म के उपासक थे । बहुत आश्चर्य की बात है कि जैन साहित्य में इस की स्पष्ट चर्चा नहीं मिलती । किन्तु पुराण और महाभारत में इस प्राचीन परम्परा के उल्लेख सुरक्षित हैं । विष्णु पुराण पद्मपुराण मत्स्यपुराण और देवो भागवत में असुरों को आहेंतु या जैन धर्म का अनुयायी बनने का उल्लेख है । बिष्णुपुराण के अनुसार माया मोह ने असुरों को आहत धर्म में दीक्षित किया । तयी नरग यजु और साम में उन का विश्वास नहीं रहा । उन का यज्ञ और पशू बलि से भी विश्वास उठ गया । वे अहिसा-धर्म में विश्वास करते लगे । उन्होंने श्राद्ध आदि कर्म-काण्डों का भी विरोध करना प्रारम्भ कर दिया । विष्णुपुराण का. मायामोह॒ किसी अरहत् का शिष्य है। उस ने असुरों को महंत के धर्म में दीक्षित किया यह भी इस से स्पष्ट है । असुर जिन सिद्धान्तों में विश्वास करने लगे वे अर्हत् घर्म के सिद्धान्त थे । माया मोह ने अनेकान्तवाद का भो निरूपण किया । उस ने अयुरों से कहा-- यह धर्मयुक्त है और यह धर्म विरुद्ध है यह सत् है और यह असत् है यह मुक्ति- कारक है और इस से मुक्ति नहीं होती यह आत्यन्तिक परमार्थ है और यह १. विष्णुपुराण ३1१७1९८ २. पहमपुराण सृष्टि खण्ड अध्याय १३ श्लोक १७०-४१३ ३ मत्स्यपुराण अध्याय ९१४ श्लोक ४३-४६ ४. देवो भागवत स्कन्ध ४ अध्याय ९३ श्लोक ४-9 विष्णुपुराण ३१८१३ अहतैतं महाधर्म मायामोहेन ते यतः । प्रोक्तास्तमाश्रिता धर्म माह तास्तेन तेडभवन्त ॥ . विष्णुपुराण ३।१८।१३ १४ ७ वहीं ३।१८।९७ ८. वहीं ३१८२४ £. वही ३१८1२८-२६ अमणसंस्कृति का प्राग-वेदिक अस्तित्व दर
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