हमारे काव्यकार | Hamare Kavyakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হে इमारे काव्यकार शब्द कबीर को उन सन्‍्तों और फकीरो से भी प्राप्त हुए है जिनके सम्पक मे वे श्रायः शहा करते भे | कबीर ने अपनी रुचि के अनुसार ही शब्दों का प्रयोग किया है} शब्दो के प्रयोग में उन्होंने शब्दों की शुद्धता पर अधिक ध्यान न देकर हृद्गत भावों पर ही अधिक ध्यान दिया है। संस्कृत, अरबी और फारसी के शब्दो को उन्होने तोडा-मरोडा भी अधिक है। शब्दों के उस तोड-मरोड मे चाहे कुछ भी दृष्टिकोण रहा हो पर उन शब्दों का जो विक्षत रूप हमारे सामने है उससे तो यही ज्ञात होता है कि कबीर ने उन शब्दों को तोड कर सरल से सरल बनाने की चेष्टा की है | कही-कही तो ये शब्द इस प्रकार तोडे-मरोड़े गए है कि उनकी वास्तविकता लुघ होगईं है। शब्दों के इस तोड-मरोड ने कबीर की भाषा की साहित्यिकता को अवश्य नष्ट कर दिया है पर इसमे सन्देह नहीं कि इससे कबीर की भाषा अधिक सरल बन गईं है और वह से साधारण के लिए अधिक उपयुक्त हो गई है । ক সস আস জি




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